SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुर-ध्याम-वचा--सर्ज-निम्बार्काऽगरूदारूभिः। · धूपो ज्वरेषु सर्वेषु प्रयोक्तव्योऽपराजितः।। अर्थ : गुग्गुल, निम्बपत्र, बालवच, कडुवा छूट तथा हरी तकी इन सबों के साथ पीला सरसों, यव तथा घी मिलाकर ज्वर में धूप दे। अथवा गुग्गुलु, सुगन्ध तृण, घोड़ वच, राल, नीम का पत्र, मदार का फूल, अगर तथा देवदारू समभाग इन सबों का अपराजित नामक धूप सभी प्रकार के ज्वरों में प्रयोग करें। ' विश्लेषण : ज्वर का वेग आने के एक घण्टा पूर्व इन धूपों का प्रयोग करने पर ज्वर का वेग नहीं आता। अथवा किसी भी ज्वर के वेग अधिक होने पर . प्रथम धूप को देने से ज्वर में स्वेद उत्पन्न होकर शीघ्र ही वेग शान्त हो जाता है। यह बार-बार का अनुभव किया हुआ योग है। . . सभी विषम ज्वर में उन्माद नाशक नस्यादि का प्रयोग धूपनस्याज्जनत्रासा ये चोक्ताश्चितवैकृते। देवाश्रयं च भषज्यं ज्वरान्सर्वान्व्यपोहति।। विशेषाद्विषमान्प्रायस्ते ह्यागन्त्वनुबन्धजाः। यथास्वं च सिरां विध्येदशान्तौ विषमज्वरे।। अर्थ : उन्माद प्रकरण में कहे गये धूप, नस्य, अज्जन, भय दिखाना आदि दैवी चिकित्सा तथा औषधि सभी विषम ज्वरों को दूर करती है। विशेष कर विषम ज्वर आगन्तुक (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) सम्बन्ध वाले होते हैं। विषम ज्वर के शान्त न होने पर जिस दोष की प्रधानता हो इसके अनुसार सिरा वेध करे। विभिन्न कारणजन्य ज्वर की चिकित्साकेवलानिलबीसर्प-विस्फोटामिहतज्वरे। । सर्पिःपानं हिमालेप-सेकमांसरसाशनम् ।। 'कुर्याद्यथास्वमुक्तं च रक्तमोक्षादिसाधनम्। अर्थ : केवल वात ज्वर, विसर्पजन्य ज्वर, विस्फोट (शीतल) ज्वर, तथा अभिघात ज्वर में घृत पान, शीतल लेप तथा अभिषेक, के साथ भोजन करे तथा उक्त सभी रोग में जो रक्त मोक्षण आदि साधन बताये गये हैं उनका प्रयोग करे। ग्रह-आदि से उत्पन्न ज्वर से चिकित्साक्रमग्रहोत्थे भूतविद्योक्तं बलिमन्त्रादिसाधनम् ।। औषधीगन्धजे पित्तशमनं विषजिद्विषं। इष्टैरर्थंनोज्ञैश्च यथादोषशमेन' च।। हिताहितविवेकैश्च ज्वरं क्रोधादिजं जयेत्। 37 . .
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy