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अर्थ : इन साठी आदि चावलों की अपेक्षा ब्रीहि (चावल) रस में स्वादु एवं विपाक में अम्ल होता है और पित्त उत्पादक गुरू अधिक मात्रा में मल और मूत्र में उष्णता लाने वाला होता है और पाटल नामक चावल त्रिदोष कोपक है। विश्लेषण : ये सभी धान तथा इसका चावल व्रीहि धान्य नाम से कहे जाते हैं। प्रायः शाली धान्य या व्रीहि धान्य एक ही है, पर शालि धान से वे लिए जाते हैं जो अधिक जल प्राप्त होने पर फलने और पकने वाले होते हैं और वे हेमन्त ऋतु अगहन में पकते हैं जिसे अगहनी धान कहते है। 2. शाठी का चावल-यह आश्विन में पक जाते है इनका जमना और पकना साठ दिन में हो जाता है। व्रीहि उसे कहते है जो शरद् ऋतु (आश्विन) में पक जाता है किन्तु ये सभी धान्य वर्षा ऋतु में बोये जाते है परन्तु इनके पकने और काटने का समय भिन्न-भिन्न होता है। धान्यों का अनेक नाम यहां दिये ये है। इस नाम से वतर्तमान समय में धान नहीं प्राप्त होते है और इन सभी गनों का गुण एवं लक्षण भिन्न-भिन्न रूप में पाया जाता है। .
कगगुकोद्रवनीवारश्यामाकादि हिमं लघु।
तृणाधान्यं पवनकृल्लेखनं कफपित्तहत् ।। पर्थ : तृणधान्य-कंगु (कगुनी) कोदव (कोदो), निवार (तिन्नी का चावल)
वा आदि धान्यों को तृण धान्य कहा जाता है। यह गुण में शीतल, लघु, तिकारक, लेखन और कफ पित्तनाशक हैं। श्लेषण : इन्हें कुधान्य या क्षुद्रधान्य भी कहा जाता है। इनके चावल से त बनाया जाता है और शाली व्रीहि और शाठी के तरह इसमें छिलके नहीं ते है और न इनके पकने में अधिक समय लगता है।
• भग्नसन्धानकृतत्र प्रियगगुंबृहणी गुरूः। कोरदूषः परं ग्राही स्पर्शे शीतो विषापहः। उद्दालकस्तु वीर्योष्णो नीवारः श्लेष्म वर्धनः। श्यामाकः शोषणो रूक्षों वातलः पित्तश्जंष्महा। रूक्षः शीतो गुरूः स्वादुः सरो विगवातक़द्यवः।। वृष्यः स्थैर्यकरो मूत्रमेदः पित्तकफाज्जयेत् । पीनसश्वासकासोरूस्तम्भकण्ठत्वगामायान्।। न्यूनो यवादनुयवः-रूक्षोणो वंशजो यवः। वृष्यः शीतो गुरूः स्निग्धों जीवनों वातपितहा।। ___सन्धानकारी मधुरो गोधूमः स्थैर्यवृत्सर।। पथ्या नन्दीमुखी शीता कषायमधुरा लघुः ।
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