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________________ इन चावलों के नामों में भी भिन्नता पायी जाती है इसका भी कारण यही सकता है कि भिन्न-भिन्न आचार्य भिन्न-भिन्न देश काल में उत्पन्न हुए अ देशानुसार चावलों के गुणों का निर्देश अपने अपने ग्रन्थों में किया है, पर सभी आचार्यों ने लाल चावल को सर्व श्रेष्ठ माना है । यवका हायनाः पांसुबाष्पनैषधकादयः । स्वादूष्णागुरवः स्निग्धाः पाकेऽम्लाः श्लेष्मपित्तलाः ।। सृष्टमूत्रपुरीषा पूर्व पूर्व च निन्दिताः । अर्थ : यवक, हायन, पांशुवाष्प, नैषधक ये चावल रस में स्वादु गुण में उ गुरू, स्निग्ध, विपाक में अम्ल कफ और पित्त को बढ़ाने वाले होते हैं। ये चा मल-मूत्र को सुखपूर्वक निकालने वाले और पूर्व - पूर्व गुणों में हीन होते हैं । स्निग्धो ग्राही लघुः स्वादुस्त्रिदोषघ्नः स्थिरो हिमः । शष्टिको व्रीहिषु श्रेष्ठो गोरश्चासित गौरतः । । अर्थ : साठी का चावल दो तरह का होता है गौर (रक्त) और कृष्णा गौर । इ कृष्ण गौर से गौर साठी का चावल सभी ब्रीहि धान्यों में उत्तम होता है और में स्न्धि, ग्राही लघु स्थिर, और रस में स्वादु एवं त्रिदोषनाशक और शीतल होता है विश्लेषण : शाठी का चावल सभी शूक धान्यों में उत्तम होता है। इसे ही शालि भी कहा जाता है। यह शरीर में स्थिरता लाता है । और वृष्य (वृष्य अर्थ शुक्रवर्धक भी हैं। चरक ने भी वृष्य प्रकरण में शाठी के चावल के भ और उरद के दाल का सेवन वृष्य माना है । यथा माषयूषेण यो भुक्ते घृतादयं शष्टिकौदनम् । पयः पिवति रात्रि स कृत्स्नां जागर्तित वेगवान् ।। ततः क्रमान्महाव्रीहिकृष्णव्रीहिजतूमुखाः । कुक्कुटाण्डकलावाख्यपारावतकशूकराः ।। वरकोद्दालको ज्ज्वालचीनशारददर्दुराः । गन्धनाः कुरूविन्दाश्च गुणैरल्पान्तराः स्मृताः । । अर्थ : इसके बाद क्रम से महाब्रीहि से कृष्णब्रीहि उससे जतुमुख उ कुकुटाण्डक उससे लाव, उससे परावतक, उससे शूकर, उससे वरक, उर उदालक, उससे उज्वाल, उससे चीन, उससे शारद, उससे दुर्दुर, उर गन्धन और उससे कुरविन्द नामक चावल क्रमशः गुण में हीन होते हैं। स्वादुरम्लविपाकोऽन्यो व्रीहिः पित्तकरो गुरुः । । बहुमूत्रपुरीषोष्मा, त्रिदोषस्त्वेव पाटलः । 84
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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