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________________ बाद और साठ वर्ष के पूर्व घृत का सेवन किया जाय तो वह निरन्तर सेवन से सात्म्य हो जाता है। फलतः साठ वर्ष के बाद जब स्वभावतः शरीर क्षीण होता है तो सात्म्य हुआ घृत बल बढ़ाने में उतम रूप से सहायक नहीं होत इसलिए आचार्य ने बालक, वृद्ध इन दोनों के लिए ही घृत का सेवन हितकर बताया है। पुराण घृत विशेष रोगों में लाभकर होता है प्रतिदिन बल वर्धन वं लिए नूतन घृत का ही प्रयोग किया जाता है पुराण घृत से तात्पर्य जितन अधिक पुराना घृत होता है उतना ही वह लाभकर होता है। पुराने घृत के परिभाषा निम्न रूप में बतायी है "उग्रगन्धपुरार्ण स्याद्दशवर्षस्थितं घुतम । लाक्षारसनिर्भ शीर्त प्रपुराणमतः।।" सौ वर्ष के पुराने घृत का नाम 'कौम्भसी बताया है जो अपस्मा उन्माद आदि रोगों में अभ्यंग के लिए शिर पर मर्दन के लिए योनि रोगों. वस्ति के लिये प्रयोग में लाया जाता है किन्तु इसका प्रयोग अन्तः प्रयोग । लिए नहीं किया जाता है। बल्याः किलाटपीयूषकूर्चिकामोरणादयः । शुक्रनिद्राकफकरा विष्टम्भिगुरूदोषलाः। गव्ये. क्षीरघुते श्रेष्ठे निन्दिते चाविसम्भवे । अर्थ : किलाट, पीयूष, कुर्चिका, मोरड़ आदि दूध की विकृतियां शुक्र, नि एवं कफ को उत्पन्न करता है, विष्टम्भी गुरू और दोषों को बढ़ाने वाले हे है। गौ के दुग्ध एवं घृत सभी दूध और घृतों में सर्वोतम होता है तथा में का दूध एवं घृत सभी दूध घृतो की अपेक्षा हीन गुण वाला होता है। विश्लेषण : किलाट-दूध या दही को किसी नीबू आदि अम्ल रस को छोड़ फट जाने पर गाढ़े भाग का नाम किलाट है जिसे छेना कहा जाता है। बचे: जल भाग का नाम मोरड़ या मोरट जिसे छेना का पानी कहा जाता है। पीयुष-तत्काल प्रसूता गौ आदि के दूध से बने हुए गाढ़े भाग नाम पीयूष है जिसे फेनुस कहते है। कुर्चिका-दधि जमाने के लिए गरम किए हुए दूध जब फट जाता है तो और गाढ़े मिलित भाग का नाम कुर्चिका है अथवा दूध को पका कर मल बनाते है उसे कुर्चिका कह सकते हैं यह सभी गुरू होते हैं इसलिए विष्ट पैदा करता है फलतः सभी वातादि दोषों को उत्पन्न करते हैं किन्तु ये: वर्द्धक शुक्रवर्द्धक, कफ वर्द्धक और निद्रा को लाने वाले होते हैं। अथेक्षुवर्गः। इक्षोः सरो गुरूः स्निग्धो वृहणाः कफमूत्रकृत्। ___70 .
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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