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________________ । है 'अर्दित रोग में यह शुक्र वर्धक एवं स्निग्ध होने से सूखे हुए स्रोतों को कोमल बनाता है। शस्तं धीस्मृतिमेधाग्निबलायुः शुक्रचक्षुषाम् । बालवृद्धप्रजाकान्तिसौकुमार्यस्वराथिनाम् । क्षतक्षीणपरीसर्पशस्त्राग्निग्लपितात्मनाम् वातपित्तविषोन्मादशोषालक्ष्मीज्वरापहम् ।। स्नेहानामुतमं शोतं वयसः स्थापनं परम् । सहस्रवीर्य विधिभिर्धृतं कर्मसहस्रकृत् ।। मदापस्मारमूच्छयिशिरः कर्णाक्षियोनिजान् । पुराणं जयति व्याधीन् व्रणाशोधनरोपणम् । मर्थ : घृत का गुण- सामान्यतः सभी प्रकार का घृत बृद्धि, स्मृति, मेधा (धारण शक्ति) अग्नि, बल, आयु, शुक्रवर्द्धक, नेत्र के लिए हितकारी होता है । बाल, द्धि एवं प्रजा (सन्तान उत्पति के इच्छुक ) कान्ति, कोमलता एवं स्वर को उतम नाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए विशेष लाभकारी होता है, एवं क्षत से क्षीण सर्प रोग से पीड़ित तथा शस्त्राघात और अग्नि से जल जाने के कारण जिन क्यों को कष्ट होता हो उन्हें एवं वात, पित, विष जन्य रोग, उन्माद, यक्ष्मा और अलक्ष्मी (शरीर के दुर्बल एवं चिन्ताग्रस्त होने के कारण जिनमें शरीर की शोभा नष्ट हो गयी हो) और जीर्ण ज्वर को दूर करने वाला होता है। स्नेहों • सबसे उत्तम शीतल परम व्यवस्थापक घृत होता है विधि पूर्व विभिन्न औषधियों से किया हुआ घृत का गुण हजार गुना बढ जाता है और हजारों रोगों को दूर करने होता है। पुराने घृत का गुण - एक वर्ष के बाद घृत पुराना हो जाता है । सका सेवन मदात्यय, अपस्मार, मूर्च्छा, शिर, कर्ण, नेत्र और योनिगत रोगों दूर करता है तथा व्रण का शोधन और रोपण करता है । श्लेषण : घृत विभिन्न गौ, भैंस, बकरी आदि का होता है यद्यपि ये सभी घृत में पायें जाते हैं फिर भी ये सभी गुण गौ के घृत में ही विशेष रूप पाये जाते हैं। आचार्य ने बालक अर्थात् सोलह वर्ष तक के व्यक्तियों के ए, वृद्ध 60 वर्ष के बाद के व्यक्तियों के लिए हितकर और विशेष कार्य कर नाया है। प्रथम वृद्धि के अवस्था में घृत सेवन से सभी धातुएँ उतम रूप से र्मित होते है और सभी स्रोत स्निग्ध होकर अपना-अपना कार्य करते हैं। |लह वर्ष के बाद जब सम्पूर्ण शरीर पूर्णरूप से समृद्ध धातु वाला हो जाता ता उस व्यक्ति के लिए प्राकृतिक आहार उतम रूप से धातुओ का निर्माण रते हैं। 60 वर्ष के बाद जब स्वतः धातुएं क्षीण होने लगती हैं तो उस समय णता की रक्षा के लिए घृत खाना आवश्यक होता है। यदि सोलह वर्ष के 69
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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