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________________ पित्त, कफ, पुरीषादि मलों का समय पर शोधन करने का प्रयास करना · . चाहिए। क्योंकि शरीर में अधिक रूप में संचित दोष कुपित होकर जीवन को नष्ट करने वाले हो जाते हैं। विश्लेषण : यथा काल मलों का शोधन करना चाहिये, किस दोष को निकालने के लिए कौन सा काल है, इसके लिये इसी अध्याय के 35 श्लोक में-'शोतोद्भवं दोषचयं वसण्ते' से बताया जायेगा। यह प्रक्रिया स्वस्थ व्यक्ति के लिए है, किन्तु कुछ विद्वानों विशेषकर सुश्रुत ने- . "भिषजः शोधनं प्राहुः वयं स्वस्थेन सर्वदा। पन्नगस्येव धोरस्य वेगं च समुदोरणम्।। अर्थ : इस प्रकार स्वस्थ व्यक्तियों के लिए शोधन का निषेध किया गया है, इस विरोध को देखकर स्वस्थ की कल्पना दो प्रकार से की जाती है। एक सचित दोष और दूसरा असंचित दोष। संचित दोष स्वस्थ व्यक्तियों के लिए यहाँ शोधन का विधान है। न कि असंचित दोष-स्वस्थ के लिये जहाँ स्वस्थ व्यक्तियों के लिए शोधन का निषेध है असंचित दोष ही लिए जाते हैं। कुछ लोग संचित दोष व्यक्तियों में दोष के बढ़ जाने से दोष वैषम्य को रोग नहीं माना है। इसलिए रोगी व्यक्तियों में ही शोधन का विधान बताते हैं, पर यह युक्ति संगत नहीं प्रतीत होता क्योंकि संचय प्रकोप प्रसर स्थानसंश्रय पूर्वक रोग होता है, संचय अवस्था में किसी रोग की उत्पत्ति नहीं होती है, क्यांकि संचय दोषों का अपने-अपने स्थानों में होता है, केवल दोषों की वृद्धि के कारणों में द्वेष और दोषों के विपरीत वस्तुओं की लेने की इच्छा होती है, पर अन्य कोई कष्ट उसको नहीं होता है इसलिये इसे स्वस्थ ही माना जाता है, अतः संचित दोषों का स्वस्थ व्यक्तियों के लिए यथा समय मलों का शोधन करना चाहिये। यदि वह अपने अपने स्थानों में संचय होता है तो प्रकोप प्रसर आदि क्रिया काल को प्राप्त कर रोग उत्पन्न करता है। इसलिये संचेयऽपहृता दोषा लभन्ते नोत्तरोगतिः' बताया गया है। दोषाः कदाचित्कुप्यन्ति जिता लंधनपाचनैः। ये तु संशोधनैः शुद्धा न तेशां पुनरूद्भवः ।। अर्थ : दोषों को दूर करने का उपाय-दोष लंघन और पाचन के द्वारा जीते जाने पर भी कदाचित् कुपित हो जाते हैं किन्तु जिन दोषों की शुद्धि संशोधन के द्वारा होती है उन दोषों की तथा दोष जन्य रोगों की उत्पत्ति पुनः नहीं होती है। विश्लेषण : आयुर्वेद चिकित्सा में शोधन और शमन ये दो मुख्य बताये गये हैं लंघन (उपवास) पाचन से दोष शान्त हो जाते है। किन्तु थोड़ा भी अपव्य का सेवन किया जाय तो वह पुनः कुपित हो जाते हैं यदि संशोधन वमन - 49
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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