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. हितं विश्रमरण तत्र वातघ्नश्च क्रियाक्रमः। अर्थ : श्रम जन्य श्वास के वेग रोध जन्य रोग और उसकी चिकित्सा व्यायाम आदि परिश्रम से उत्पन्न श्वास को रोक देने से गुल्म, हृदय रोग और सम्मोह अर्थात् मन में अधिक बेचैनी होती है इसमें विश्राम करना और वात नाशक विधियाँ करनी चाहिए।
. जृम्भायाः क्षववद्रोगाः सर्वश्चानिलजिद्विधिः। . अर्थ : जुम्भा वेग धारण जन्म रोग और उसकी चिकितसा-जंभाई के वेग को रोकने से, छींक रोकने से जो भी रोग होते हैं अर्थात् शिरःशूल इन्द्रिय दौर्बल्य मन्यास्तम्भ और अर्दित (मुंहका लकवा) वे सभी रोग होते है इसमे वातनाशक सभी चिकित्सा करनी चाहिए।
पीनसाक्षिशिरोहृद्रुङ्मन्यास्तम्मारूचिभ्रमाः।
सगुल्मा बाष्पतस्तत्र स्वप्नो मद्यप्रियाःकथा।। अर्थ : आंसू के वेग रोध अन्य रोग और उसकी चिकित्सा आये हुए आंसू के वेग रोकने से पीनस, नेत्र रोग, शिरःशूल, हृदयं रोग, मन्यास्तम्भ, भोजन में अरूचि, भ्रम (चक्कर आना) और गुल्म रोग होते हैं। इसमें रोगी को शयन,
और प्रिय लगने वाली कथाओं का श्रवण करना हितकर होता है। विश्लेषण : नेत्रों से सदा थोड़ी-थोड़ी मात्रा में आँसू का स्त्राव होता रहता है किन्तु शोक अथवा विशेष आनन्द की अवस्था में यह नाव अधिक मात्रा में होने लगता है। उसे रोकना रेयस्कर नहीं होता, आसू का सम्बन्ध यद्यपि अश्रु ग्रन्थि से ही होता है पर इसका संबन्ध उदर से लेकर शिशोभग तक होता है। इसलिये उन सभी भागों में आंसू रोकने से बुरा प्रभाव पड़ता है। विशेषकर नासिका से पानी का गिरना और सभी प्रकार के नेत्ररोग, शिरःशूल मुख्य रूप से होता है, किन्तु कभी-कभी शोक या आनन्द से निकले हुए आंसू को रोकने से हृदय पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। जिससे हृदय दुर्बल हो जाता है, फलःस्वरूप बेचैनी बढ़ जाती है। और आंसू के वेग रोकने से उर्ध्वाग प्रदेश में कुपित वायु मन्यास्तम्भ एवं उदर प्रदेश में कुपित वायु गुल्म रोग को उत्पन्न करता है। यह एक प्रसिद्ध रोग है जो लोग अपनी दृढता और धीरता को प्रकट करने के लए आंसू के वेग को रोक लेते हैं उन्हें यह रोग होता है, इसमें प्रिय कथा श्रवण लाभकर होता हैं। चरक और सुश्रुत ने गुल्म रोग और मन्यास्तंभ का होना नहीं बताया है।
विसर्पकोठकुष्ठाक्षिकण्डूपाण्ड्वामयज्वराः। सकासश्वासहृल्लासव्यश्वयथवो वमेः।। गण्डूषधूमानाहारा रूक्ष भुक्त्वा तदुद्वमः । व्यायामः स्तुतिरस्त्र शस्त चात्रा विरेचनम् ।।
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