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________________ की तरह चिकित्सा की जाती है। अर्थात् धूम्रपान, नस्य का प्रयोग किया जाता है। शिरोऽर्तोन्द्रियदौर्बल्यमन्यास्तम्भादितं क्षुतेः। तीक्ष्णधूमाञनाघारगनावनार्कविलोकनैः। प्रवर्तयेत्क्षति सक्तां स्नेहस्वेदौ च शीलयेत्।। अर्थ : छींक वेग रोध का लक्षण एवं चिकित्सा आये हुए छींक के वेग को रोकने से शिरःशूल, नेत्र आदि ज्ञानेन्द्रियों में दुर्बलता-मन्यास्तंभ और अर्दित रोग होते हैं। चिकित्सा–छींक के रोकने से उत्पन्न रोगों में तीक्ष्ण धूम्रपान अन्जन, घ्राण नावन (नस्य) और सूर्य के किरणों की और नासिका को दिखाकर रूके हुए छींक के वेग को निकालना चाहिये। तथा शिरप्रदेश पर स्नेहन एवं स्वेदन करना चाहिये। शोषासादबाधिर्यसम्मोहम्रमहदगदाः। तृष्णाया निग्रहातत्र शीतः सर्वो विधिर्हितः। अर्थ : तृष्णा वेगरोध का लक्षण एवं चिकित्सा-प्यास के वेग को सोकने से मुखशोष अंगों में वेदना (उत्साह का न होना) वधिरपन, सम्मोह (ज्ञानशून्यता) भ्रम (शरीर का घूमना) हृद्रोग होता है। . चिकित्सा इसमें सभी स्नान, पान, भोजन आदि में शीतल द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिये। प्रगमगारूचिग्लानिकाय॑शूलभ्रमाः क्षुधः। तत्र योज्यं लघु स्निग्धमुषगमल्पं च भोजनम्।। अर्थ : भूख के वेगरोधजन्य रोग का लक्षण और उसकी चिकित्सा-भूख के वेग रोकने से अंगों में भगं (टूटने की तरह पीड़ा) भोजन में अरूचि, ग्लानि, शरीर में कृशता और पक्वाशय में वेदना तथा चक्कर का आना होता है। निद्राया मोहमूर्धाक्षिगौरवालस्यजृम्भिकाः। अङ्गमर्दश्च, तत्रेष्ट:स्वप्न: संवाहनानि च। ' अर्थ : निद्रा वेग रोध जन्य रोग और उसकी चिकित्सा-निद्रा का वेग रोकने से मोह (मन में बेचैनी) मस्तक और नेत्र में भारीपन, आलस्य, ज़म्भाई और अंगों में नर्दनवत् पीढ़ा होती है, इसमें स्वप्न और संवाहन अर्थात् शरीर में तैलों का मर्दन करना चाहिए। चरक ने तन्द्रा का होना अधिक बताया है। कासस्य रोधात्तवृद्धिः श्वासारूचिहृदामयाः।। शोषो हिध्मा च.खकार्योऽत्र कासहा सुतरां विधिः।। अर्थ : कास वेग रोध जन्य रोग और उसकी चिकित्सा-आये हुए कास के वेग धारण करने से कास की वृद्धि श्वास, भोजन में अरूचि, हृदय रोग, मुख शोष और हिक्का रोग हो जाते है इसमें कास नाशक सभी चिकित्सा करनी चाहिए। गुल्महृद्रोगसम्मोहाहः श्रमश्वासाद्विधारितात् । 45
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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