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________________ निकलना बन्द नहीं होता। इस लिये अग्नि बाहर निकलती रहती है। वर्षा काल में गर्मी के दिनों में संन्तप्त पृथ्वी जल के गिरने से शीतल होती है किन्त बाष्प अधिक निकल कर शरीर को दूषित करता है। पीने के लिये गन्दा जल ही मिलता है जो अधिक गरिष्ट होता हैं। स्वाभावतः मन्द अग्नि आहार मिलेगा तो उसका पाचन नहीं ही हो पाता है। पृथ्वी से गर्म-गर्म वाष्प निकलने से दोष कुपित होते हैं इसलिए इस ऋतु में हलका मूंग यव गेहूं चावल आदि का प्रयोग करना चाहिए। शाकाहारी व्यक्तियों के लिये पर्याप्त मात्रा में सोचर नमक मिलाकर दही का पानी कूप जल को गरम कर पीना चाहिए। और विशेष कर जब अधिक वर्षा या हवा हो तो हल्का और सूखा आहार में पर्याप्त अम्ल नमक घृत मिलाकर लेना चाहिए। इस ऋतु में नदी का जल सत्तू कदाऽपि नहीं खाना चाहिये व्यायाम, दिन में शयन और धूप में अधिक बैठना नहीं चाहिए। वर्षाशीतोचितागानां सहसैवार्करश्मिभिः। तप्तानां सञ्चितं वृष्टौ पित्तं शरदि कुप्यति।। तज्जयाय धृतं तिक्तं विरेको रक्तमोणगम्। तिक्त स्वादु कशायं च क्षुधितोऽन्नं भजेल्लघु।। शालिमृद्गसिताधात्रीपटोलमधुजागंलम्। तप्त तप्तांशुकिरणैः शीतं शीतांशुरश्मिभिः ।। समन्तादप्यहोरात्रमगस्त्योदयनिर्विषम् । शुचि हंसोदकं नाम निर्मलं मलजिज्जलम्।। . नामिष्यन्दि न वा रूक्षं पानादिरष्वमृतोपमम् । चन्दनोशीरकर्पूरमुक्तास्त्रग्वसनोज्ज्वलः।। सौधेषु सौधधवलां चन्द्रिका रजनीमुखे। अर्थ : शरद ऋतुचर्या-वर्षाकाल में प्रत्येक व्यक्ति को शीत अभ्यस्त हो जाता है, ऐसे व्यक्ति के अंगों में सहसा सूर्य की तीव्र किरणों के लगने से शरीर गर्म हो जाता है, अतः वर्षाकाल में संचित पित्त को जीतने के लिए तिक्त घृत का सेवन जो (कुष्ठ के प्रकरण में बताया जाएगा) विरेचन, रक्तमोक्षण और भूख लगने पर तिक्त, स्वादु कषाय रस वाले हल्के अन्न खाना चाहिये। अन्नों में पुराना चावल, मूंग, मिश्री आमला, परवल, मधु और सेवन करें। दिन में सूर्य की किरणों से तप्त और रात में चन्द्रमा के किरणों से शीतल एवं अगस्त्य तारा के उदय होने पर विपरहित हंसोदक नामक निर्मल एवं दोषों को दूर करने 37
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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