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________________ (वेरवा), वाली, खिले कमल पुष्प की तरह मुख वाली और पद्मिनी (कमल का पत्रचाङ) की तरह चलने फिरने वाली मनोहर स्त्री थकावट को दूर कर देती है। विश्लेषण : यह ऊपर की सारी विधियां उन व्यक्तियों के लिये है। जिन्हें कोई कार्य न हो केवल विलास मय जीवन बिता रहे हों। वर्तमान काल में ये सब असम्भव सा है। संक्षेप में इस काल में वायु की वृद्धि होती है इसलिये मधुर रस प्रधान भोजन शीतल जल सत्त् का सेवन, पुराने चावल का भात, आम का पानक पीना चाहिये। मिट्टी के पात्र में रखे खस से सुगन्धित जल का सेवन करना चाहिए। जो व्यक्ति मदिरा पीता हो उसे मद्य नहीं पीना चाहिये। क्योंकि मद्य अम्ल और उष्ण होता है। इससे गरमी के दिनों में हानि हो जाती है। क्योंकि अम्ल और उष्ण से पित्त की अधिकता होती है। जिससे कफ का क्षय होता रहे। यदि व्यक्ति कफ पित्त प्रकृति का हो तो उसे अधिक जल पीना चाहिए। इस ऋतु में वेला की फूलों की माला पहनना शरीर के लिए लाभ कर है। रसाला यह श्रीखंड शब्द से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र विशेषकर में मिलता है। दही का जल निकाल कर केसर आदि सुगन्धित वस्तु और चीनी मिलाकर पानक बनाया जाता है। पदार्थ चन्द्रिका में चीनी का शर्बत लिखा है। सतना राग-गुड़-दाडिम-मासाद्यारागाश्चांशुकगालिताः। खाडव-'स्वादम्लपटुकट्बाद्याप्रलेहस्तत्र खाडवा। पत्रचसारपानक-मधुखर्जूर मृद्विका परूशकसिताम्भसा। मन्थोवा पञसारेण सघृतैःलाजशक्तुभिः।। ' तुल्यांशैः कल्पितं पूर्त शीतं कर्पूरवासितम्।। पानकं पंचसाराख्यं दाहतृष्णानिवर्त्तकम्।।" इस प्रकार राग, खाडव और पञचसार पानक बनाने की विधियां बताई गई हैं। आदानग्लानवपुषामग्निः सन्नोऽपि सीदति। वर्षासु दोषैर्दुष्यन्ति तेऽम्बुलम्बाग्बुदेऽम्बरे ।। सतुषारेण मरूता सहसा शीतलेन च। भूबाष्पेरगाम्लपाकेन मलिनेन च वारिणा।। . . वहिनैव च मन्देन, तेष्वन्योन्यदूषिशु । भजेत्साधारणं सर्वमूष्मरगस्तेजनं च यत्।। .. ! आस्थापनं शुद्धतनुर्जीर्ण धान्यं रसान् कृतान्। जागर्ल पिशितंयूषान् मध्वरिष्टं चिरन्तनम् ।। मस्तु सौवर्चलाडयं वा पञ्चकोलावचूर्रिगतम्। 35 ..
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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