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________________ कोमलैः कल्पिते तल्पे हसत्कुसुमपल्लवे । मध्यंदिनेऽर्कतापार्तः स्वप्याद्वारागृहेऽथवा । पुस्तस्त्रीस्तनहस्तास्यप्रवृत्तोशोरबारिणि । अर्थ : अभ्रकष-अर्थात् आकाश को छूने वाले बड़े-बड़े सखुआ ताल के पेड़ों के द्वारा जिस पर माधवी, वासन्ती फूल और अंगूर आदि लता और उनके गुच्छों से पेड़ धने हो ऐसे बनों में मध्याहृ काल में निवास करें। अथवा सुगन्धित शीतल जल छिड़का गया हो ऐसे परदे वाले, आम के कोमल पत्तों और फलों के गुच्छों से बने हुए बन्दनवार से युक्त बांस मूज के छप्परों से बने हु केला की पत्ती, सुगन्धित कमल, मृणाल, नील कमल के कोमल पत्तों से सजाये गये गृह में एवं जिस चारपाई पर कोमल पत्ती और फूल खिले हुयें हो ऐसे खाट पर बैठकर ग्रीष्म काल में सूर्यताप से तप्त व्यक्ति मध्याह काल का यापन करे । अथवा जिस घर में फुहारा स्त्री के रूप में बनी हो और उस स्त्री के स्तन, हाथ, मुख के श्वास से सुवासित सुगन्धित जल गिर रहा हो ऐसे घर में मध्याह समय बितावे । । निशाकरकारकीर्णे सौंधपृष्ठे निशासु च । आसना स्वस्थचितस्य चन्दनार्द्रस्य मालिनः । निवृतकामतन्त्रस्य सुसूक्ष्मतनुवाससः । जलाद्रस्तिालवृन्तानि विस्तृताः पदिमनीपुटाः । उत्क्षेपाश्च मृत्क्षेपा जलवर्षिहिमानिलाः । कर्पूरमल्लिकामाला हाराः सहरिचन्दनाः । मनोहरकलालापाः शिशवः सारिकाः शुकाः । मृरगालवलयाः कान्ताः प्रोत्फुल्लकमलोज्ज्वलाः । जमा इव पद्मिन्यो हरन्ति दयिताः क्लमम् ।। अर्थ : रात्री काल में चूना लगाये हुये श्वेत कोठे के ऊपर जहाँ चन्द्रमा का • किरण उत्तम रूप से लग रहा हो ऐसे कोठे पर स्वस्थ चित्त होकर बैठे अथवा शयन करे। उस समय चन्दन लगाने से शरीर को गीला करता रहे। सगन्धि ात फूलों की माला पहने । मैथुन से बिलकुल दूर रहे लघु एवं महिन शवेत • वस्त्र का धारण करे | जल से भिगोये हुए ताड़ पंखा अथवा कमल की पत्ती से बने हुए पंखा के द्वारा उस पंखे की हवा धीरे-धीरे ले । कर्पूर मल्लिका, बेला फूल की माला जिस पर चन्दन का लेप किया हो उसे पहन ले । सुन्दर आलोप (बात चीत करने वाले) बालक, सारिका, सूगा हो तथा मृणाल बलय 34
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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