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________________ रेल की एक पटरी पर दो गाड़ियाँ एक साथ नहीं चल सकतीं। कुछ आगे-पीछे चलती है तथा तेज गति से चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेन को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसी प्रकार पहले आवेग और उसके बाद में निर्बल वेग को चलने को . स्थान मिलता है। जैसे चमकीली वस्तुएँ पहले दिखाई देती हैं, तेज आवाज पहले है। नाड़ी तंत्र की प्राथमिकताएँ बदलने से शरीर की सभी गतिविधियों में असन्तुलन हो जाता है। मस्तिष्क में अधिक रक्त संचार की आवश्यकता होती है। रक्त का दबाव बढ़ने से आक्सीजन की ज्यादा आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति के लिए श्वास तेजी से चलने लगती है। शरीर की सारी ऊर्जा आवेग से उत्पन्न स्थिति को नियंत्रित करने में लगने से हृदय, श्वसन और नाड़ी तंत्र को अधिक कार्य करना पड़ता है। अतः इन्हें अधिक प्राणऊर्जा की आवश्यकता होती हैं, जिसकी पूर्ति शरीर में एड्रीनल ग्रन्थि का स्रवण भेजकर की जाती है। शरीर अल्पकालीन आवेग मैं तो येन-केन-प्रकारेण अपना सन्तुलन पुनः बना लेता है, परन्तु लम्बे समय तक रहने वाले आवेग से रोग हो ही जाते हैं। उपचार से पूर्व यम-नियम का पालन आवश्यक इसी कारण उपचार से पूर्व मानसिक विकारों को दूर करने के लिए यम, नियम का पालन आवश्यक होता है। पतंजलि के अष्टांग योग का प्रारम्भ भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि यम के पालन से होता है और शौच (मानसिक शुद्धता), पवित्रता, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान आदि नियमों का पालन आवश्यक बतलाया गया है। उसके बिना स्थायी स्वास्थ्य को असम्भव बतलाया है । परन्तु आज योग भी मात्र आसन और प्राणायाम तक सीमित होता जा रहा है। परिणामस्वरूप पातंजल योग जिससे सम्पूर्ण स्थायी निरोगता की प्राप्ति हो सकती थी, मात्र शारीरिक सफूर्ति का माध्यम बन कर रह गया है, जिसमें प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे योग की साधना से नर को नारायण बनाने की क्षमता • आधुनिक रेकी चिकित्सकों को भी रेकी करने से पूर्व निम्न पाँच संकल्पों 'का आचारण अनिवार्य होता है, जिसके बिना रेकी (स्पर्श) चिकित्सा प्रभावशाली नहीं होती । 1. ..मैं क्रोध अथवा गुस्सा नहीं करूँगा। 2. मैं सभी जीवों के प्रति करुणा, दया, प्रेम, मैत्री व आदर का व्यवहार करूँगा । 3. मैं अपना कार्य ईमानदारी पूर्वक करूँगा ! 4. मैं चिन्ता नहीं करूँगा । 5. मैं प्रकृति की कृपा का आभार मानूंगा। 86.
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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