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अपने आप में रोग है, क्योंकि जब भी उसको ठेस लगती है तो मन में घृणा, द्वेष, कलह की स्थिति बनती है।
घमण्डी व्यक्ति सदैव अपने को ही श्रेष्ठ समझता है और सबको वह हीन-दृष्टि से देखता है। उसकी बुद्धि पक्षपात पूर्ण हो पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो जाती है, अतः कभी-कभी सच्चाई को जानते हुए भी स्वीकार नहीं करता, अतः उसका ज्ञान अथवा बुद्धि सीमित और संकुचित तथा विवेक सुषुप्त हो जाता है। प्रायः ऐसा व्यक्ति
दूसरों के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास नहीं करता। अहंकार पर चोट लगने .. ..' से क्रोध अधिक आता है, जो अधिकांश रोगों का कारण बनता है। महान् व्यक्ति. अभिमानी नहीं होते और जो अभिमानी होते हैं, वे कभी महान नहीं हो सकते।
क्या लोभ रोग का कारण है
लोभ भी मानसिक रोग है। आज महत्त्वाकांक्षा को विकास का लक्षण माना जाता है। महत्वाकांक्षा मात्र जीवन चलाने के लिए हो तो, उसे फिर भी उचित माना जा सकता है, परन्तु जब ये असीम बन जाती है तो समस्या बन जाती है। प्रतिस्पट " के इस युग में मानसिक रोगों का एक प्रमुख कारण होता है-- महत्वाकांक्षाओं का असीम हो जाना । लोभ के कारण दूसरों से ईर्ष्या, द्वेष , कलह, लड़ाई, झगड़े आदि करने का कोई विचार नहीं होता, जिससे व्यक्ति अशान्तं और तनावग्रस्त रहने लगता है। जो रोग का कारण होते हैं।
आत्महत्या क्यों ? - कभी-कभी मन में इन्द्रियों के भोग रूपी विषयों की तीव्रता अथवा कषाय रूपी दुर्भावनाओं, इच्छाओं की पूर्ति न होने से अथवा ऐसे ही असम्भव लगने वाले कारणों से व्यक्ति निराश हो जाता है। उसे संसार से घृणा हो जाती है। जीवन के प्रति नीरसता, उदासीनता, निराशा के भाव उसके अचेतन मन और अन्तर्मन में हावी हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर की जीवन रक्षक शक्तियाँ शिथिल होने लगती हैं और व्यक्ति मारणान्तिक भय उपस्थित होने पर भी असजग रहता है तथा अपनी सबुद्धि, विवेकपूर्ण, समयानुकूल सही निर्णय लेने का प्रयास नहीं करता। यही कारण है कि व्यक्ति आवेग के उन क्षणों में अपने आपको न सम्भाल पाने के कारण आत्महत्या करने जैसा निर्णय लेते हुए भी संकोच नहीं करता। अतः ऐसी . परिस्थितियों से बचने के लिए निराशाजनक विचारों से सदैव बचना चाहिए।
जैसे तूफान के प्रभाव से तोड़-फोड़ और विनाश की स्थिति हो जाती है, उसी प्रकार आवेग से शरीर, मांसपेशियों, अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ आदि अत्यधिक प्रभावित होती हैं। जैसे ही मस्तिष्क आवेग का संवदेन करता है, तुरन्त आवश्यकतानुसार चेष्टांवाही क्रियाशील नाड़ियों को सहायता हेतु आदेश देता है।
वेग केवल ही एक ही दिशा में ऊपर अथवा नीचे जाता है। जिस प्रकार
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