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________________ .. रो पाने के कारण व्यक्ति में अन्दर ही अन्दर घुटन होने लगती है जिससे अनेक रोग होने की सम्भावनाएँ रहती हैं। पुरूषों की अपेक्षा भारतीय महिलाएँ भावुक होने के कारण आँसुओं के द्वारा अपने विकारों का विसर्जन कर देती है. इस कारण मानसिक तनावों से अपेक्षाकृत कम ग्रसित होती हैं। तनाव के समय रोने के लिए किसी मौके की तलाश रहती है, जैसे ही किसी ने कुछ विपरीत कहा अथवा देखा या सुना, तुरन्त रोना आ जाता है। अतः सदैव रोंना कमजोरी का लक्षण नहीं होता। . तनाव से निबटने की शारीरिक व्यवस्थाओं में रोना भी एक साधन होता है। . . . तनाव विसर्जन के उपाय __तनाव के कारणों को समझे बिना उससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता। ऐसा प्रयास लकड़ी जलाकर रसोई बनाने के बजाय मात्र धुंआ करने के समान होगा। तनाव दूर करने के लिए---- 1. दूसरों के विचारों को पूरी तरह सुनने, समझने एवं सत्यता के आधार पर स्वीकारने अथवा मान्यता देने का प्रयत्न करना चाहिए। दूसरों के विचारों - को बदलने हेतु परेशान नहीं होना चाहिए। आसपास के लोगों तथा वातावरण के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं.का ध्यान - रखना चाहिए। व्यर्थ तर्क-वितर्क से बचना चाहिए। तनाव का कारण स्वयं में ढूँढ कर उसे स्वीकारना चाहिए। क्योंकि स्वयं का नियंत्रण तो हमारे ही पास है। दूसरों से अपेक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए। अपमान होने पर भी मन को. छोटा नहीं करना चाहिए। अपितु भूल जाना और क्षमा करना ही श्रेयस्कर होता है। .... वर्तमान में जीने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों के साथ छल, कपट, मायावृत्ति के स्थान पर खुले हृदय से व्यवहार.. करने से तनाव कम हो जाता है। दूसरों के भविष्य के बारे में व्यर्थ चिन्ता नहीं करनी चाहिए। कठिन परिस्थितियों, प्रतिकूलताओं में धैर्य रखना चाहिए. क्योंकि वे सदैव । रहने वाली नहीं होती। 7. . अपनी आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं, आसक्तियों और इच्छाओं का विश्लेषण कर, अपनी अप्रसन्नता, दु:ख आदि का मूल कारण ढूँढें। जिन व्यक्तियों को आप पसन्द नहीं करते अथवा जो आपको पसन्द नहीं करते, उनके प्रति आपके व्यवहार की समीक्षा कर, कारणों को दूर करने का प्रयास करें। - अपने कार्यों से शरीर और मन के साथ-साथ अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के साथ भी तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित रखने का प्रयास करे। . 9. . मनुष्य जब प्रसन्न होता है तब ही उसे हँसी आती है। तनाव में हँसी और 81 . .
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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