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________________ पारणतया अपनी आँखों से नहीं देख सकते, उनको यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है तथा जिन्हें यंत्रों की सहायता से भी नहीं देख सकते, उनको आत्मिक ज्ञान. का विकास होने पर देख सकते हैं। जैसे स्मृति होने पर अप्रत्यक्ष पूर्वघटित घटनाओं को प्रायः हम देखते हैं। - इन्द्रियों से पदार्थों का बाहरी ज्ञान ही हो सकता है। यंत्र चाहे जितना शक्तिशाली क्यों न हो, हम इन्द्रिय ज्ञान से परे की वस्तु को नहीं पहचान सकते? अतः हम चाहे कितना ही समय या शक्ति क्यों न लगा दें, हम आधुनिक विकसित यंत्रों से पदार्थों के असली स्वरूप का पूर्ण रूप से पता नहीं लगा सकते। यंत्रों द्वारा प्राप्त आज का ज्ञान कल अज्ञान में परिणित हो सकता है। भूतकाल का ज्ञान चन्द बातों में आज गलत प्रमाणित हो चुका है और आज का भौतिक ज्ञान भविष्य में अज्ञान समझा जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आत्मिक बल को भौतिक यंत्रों से नहीं मापा जा सकता। आत्मानुभूतियाँ स्वयं अपने आपमें उसके अस्तित्त्व को बोध कराती. है। जिन्हें भौतिक परीक्षणों अथवा प्रयोगों के द्वारा पूर्ण रूप से जानना सम्भव नहीं। सत्य की ताकत सत्य बोलने वाला ही जान सकता है। सत्य बोलने वालों के मन में कितनी शान्ति, एवं निर्भयता मिलती है, उसका अनुभव तो सत्य बोलने वाला ही कर सकता है। युद्ध में हजारों योद्धाओं को जीतने वाला वीर अपने आपको क्यों नहीं जीत पाता? आत्म बल भाषण, लेखन अथवा अभिव्यक्ति का विषय नहीं होता। पानी पीने से प्यास बुझती है। अतः जनसाधारण को यह जानने की आवश्यकता नहीं कि पानी पीने से प्यास क्यों बूझती है? अनुभव द्वारा आत्मा के अस्तित्व का बोध किया जा सकता है। जैसे हम हवा को नहीं देख सकते, फिर भी स्पर्श के द्वारा उसका . बोध होता है। उसी प्रकार अनुभव एवं ज्ञान गुण से आत्मा की प्रतीति की जा सकती है। - एक अंधेरे कमरे में परदे पर सिनेमा के चित्र दिखाए जा रहे हैं। हम उन चित्रों को अच्छी तरह से दखे रहे हैं। किसी ने उस कमरे की खिड़कियाँ और दरवाजे खोल दिए और उसके कारण यदि परदे पर सूर्य का प्रकाश पड़ने लग जाए तो हमें पर्दे पर वे चित्र दिखना बंद हो जाएँगे। चित्र अब भी परदे पर है, परन्तु हम उन्हें नहीं देख सकते है? कभी नहीं। इसी प्रकार हमारे पूर्व जन्म की घटनाएं हमारी आत्मां के साथ होती है, परन्तु हम उसके सम्बन्ध के बारे में अस्तित्व होते हुए भी नहीं जान सकतें। हमारे वर्तमान के इन्द्रिय ज्ञान ने उन घटनाओं का ज्ञान रोक रखा है। अतः हम अपने इन्द्रिय ज्ञानरूपी दरवाजों और खिड़कियों को बन्द कर मानसिक · एकाग्रता, आत्म-चिन्तन, ध्यान, कार्योत्सर्ग रूपी किरणों से जानने का प्रयत्न करें तों पूर्व जन्म की समस्त घटनाक्रमों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। = - = कर्मबन्ध और निर्जरा क्यों व कैसे ? . . . . . . 60 60 ...
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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