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प्रस्तावना
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आजादी के 55 साल बाद जब हम नई सदी में प्रवेश कर चुके हैं। तब विकास के पैमानों के ऊपर पुनर्विचार फिर से शुरू हुआ है। पश्चिम के विकास की अवधारणा ने दुनिया की अन्य सभ्यताओं के विकास की अवधारणाओं को बहुत पीछे .. छोड़ दिया है। इसकी बजह से दुनिया में सभी तरफ पश्चिम का विकास ही दिखाई देता है।
. इसी तरह आधुनिक विज्ञान (पश्चिमी आधुनिक विज्ञान) ने दुनिया के अन्य तमाम सभ्यतागत विज्ञान को लगभग खत्म ही कर दिया है। यह सब कुछ बहुत सोच समझकर रणनीति के तहत किया गया है। इन सब का इतिहास हम किताबों में पढ़ सकते है। . स्वास्थय का सवाल मानव समाज के लिए हमेशा से महत्त्वपूर्ण रहा है। उसके साथ-साथ स्वस्थ कैसे रहे यह भी हर समाज अपने तरीके से सोचता आया .. है। लेकिन आधुनिक चिकित्सा पद्धति (ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति) ने स्वस्थ रहने के सवाल पर कोई नजरिया पेश ही नहीं किया बल्कि अस्वस्थ होने की स्थिति में ढेर सारी दवाई देने के तरीके खोज निकाले है। इस वजह से दवा उद्योग भी काफी तेजी से बढ़ा है और मरीजों की संख्या भी बढ़ती गयी है। यह आश्चर्यजनक बात है कि एक तरफ डॉक्टर भी बढ़ रहे है, हॉस्पिटल भी बढ़ रहे है और मरीज भी बढ़ रहे है।
गांधीजी ने इस बात पर काफी जोर दिया था कि यदि हम स्वस्थ रहने । के बारे में समाज के लोगों को जाग्रत करें तो लोग कम से कम बीमार पड़ेगें। यह सिद्धांत सभी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में अपनाया जाता है। इसीलिये आज यह आवश्यकता है कि इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया जाये।
इसी के फल स्वरूप डॉ चंचलमल चोरड़िया की यह किताब आंदोलन द्वारा प्रकाशित की जा रही है। डॉ चंचलमल चोरडिया वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञ हैं। पूरे देश में जगह-जगह उनके शिविर लगते हैं और रोगियों को उनके उपचार से काफी लाभ भी मिलता है। हम उनके आभारी है कि जनहित के लिए उन्होंने यह पुस्तक आंदोलन को प्रकाशित करने की अनुमति दी। आशा है सभी सुधी पाठकों को इस किताब से अवश्य लाभ मिलेगा।
राजीव दीक्षित .
आजादी बचाओ आंदोलन
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