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तृतीय भाव में गोचर- स्थान प्राप्ति धन संग्रह से हर्ष, शुभ समाचार प्राप्त हो, शत्रु का नाश हो। चतुर्थ भाव में गोचर- रोग, सुख नाश पंचम भाव में गोचर- क्रोध, मन दुखी, रोग षष्ठ भाव में गोचर- रोगों का नाश, शत्रु का नाश सप्तम भाव में गोचर-यात्रा, पेट या गुदा में पीड़ा सम्मान हानि, मन दुखी अष्टम भाव में गोचर- रोग, मन दुःखी, कलह, राजा या अधिकारी से भय उनकी नाराजगी का भय नवम भाव में गोचर- अपने प्रिय लोगों से बिछोह, उद्योग में असफलता, मन दुःखी, कष्ट दशम भाव में गोचर- कार्य सिद्धि, मन में हर्ष, उत्साह एकादश भाव में गोचर- स्थान प्राप्ति, मान-सम्मान प्राप्ति धनलाभ, रोग से छुटकारा, मन प्रसन्न द्वादश भाव में गोचर- क्लेश धन की वर्बादी, रोग दोस्त दुश्मनी करें। यह स्थूल फल दिया गया है। पूर्णफल तो जन्मकुण्डली में सूर्य की स्थिति तथा दशान्तर दशा पर निर्भर करता है। यह फल भाव के कारक के आधार पर तथा सूर्य के शुभाशुभ स्थानों को ध्यान में रखकर दिया गया है। यह सूर्य संक्रान्ति के आधार पर है। सूर्य संक्राति का नक्षत्र से गोचर विचार जिस दिन संक्राति हो उस दिन चन्द्रमा का नक्षत्र लिख ले तथा जन्म के समय जिस नक्षत्र पर चन्द्रमा है उसको भी लिख ले। उसे जन्म नक्षत्र कहते है। संक्राति के दिन जिस नक्षत्र पर चन्द्रमा था उससे लेकर जन्म नक्षत्र तक गिने। तथा संख्या में एक जोड़ें यदि संख्या 1,2,3 में से कोई हो तो यात्रा, रास्ता चलना पड़े। 4,5,6,7,8,9 में से कोई हो तो - भोग, सुख 10,11,12 में से कोई हो तो - कष्ट 13,14,15,16,17,18 में से कोई हो तो- नवीन वस्त्र या वस्तु की प्राप्ति 19,20,21 में से कोई हो तो - हानि 22,23,24,25,26,27 में से कोई हो तो- धन की प्राप्ति होती है।