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है। यह सत्य है कि फलित का पूर्ववर्ती गणित है, किन्तु साधारण पाठकों के लिए गणित ज्योतिष इतना अनिवार्य नहीं है। साधारण जन प्रामाणिक ज्योतिर्विदों द्वारा बनाये गये पंचांगों से फलित सम्बन्धी गणित के सिद्धान्तों द्वारा अपने शुभाशुभ को जान सकता है। जन साधारण जो ज्योतिष के गूढ़ गणित का ज्ञाता नहीं है- के लिए पंचांग एक अनिवार्य वस्तु है। इसमें पांच अंग होने से इसे पंचांग कहा जाता है। ये पांच अंग हैं-तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण । वस्तुतः पंचांग भारतीय शैली का कलैण्डर है। एक विद्वान् ने पंचांग के बारे में कहा--
चतुरङ्ग बलौ येतो जगतिं वशमानयेत्।
अहं पंचाङ्ग बलवान्! आकाशं वशमानय ।। अर्थात्- पंचांग ने एक बार अपना महत्त्व बतलाते हुए उद्घोषणा की कि राजा तो बेचारा चतुरंग (चार अंग- हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल सैना) के द्वारा धरती के लोगों को ही जीत सकता है, वश में कर सकता है, लेकिन मैं पंचांग इतना बलवान् (शक्तिशाली) हूँ कि आकाश में स्थित नक्षत्रों को भी वश में कर लेता हूं। अर्थात् उनकी जानकारी दे कर लोगों को उनके अनिष्ट प्रभाव से बचा सकता हूँ। तिथि सर्वप्रथम पंचांग में तिथि दी रहती है। चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहते हैं। सूर्य और चन्द्रमा के अन्तरांशों पर तिथि का मान (तिथि के प्रारम्भ होने से लेकर उसके समाप्ति पर्यन्त) निकाला जाता है। सूर्य और चन्द्रमा के परिभ्रमण में प्रतिदिन 12 अंशों का अन्तर रहता है, यह अन्तरांशों का मध्यम मान है। एक मास में 30 तिथियां होती हैं और दो पक्ष होते हैं। पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की पन्द्रह तिथियां कृष्ण पक्ष की और अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की पन्द्रह तिथियां शुक्ल पक्ष की कहलाती हैं। चंद्रमा – सूर्य = तिथि
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