________________
पंचांग
पंचांग में प्रत्येक दिन के 5-30 प्रातः के ग्रह स्पष्ट के अंश दिये होते हैं जिससे उस दिन के किसी भी समय के ग्रह स्पष्ट निकाले जा सकते हैं तथा कुण्डली बनाई जा सकती है। पंचांग में स्थान विशेष से लग्न भी दिये होते हैं जिससे किसी भी समय का उस दिन का लग्न निकाला जा सकता है। पंचांग का अर्थ होता है पांच+अंग अर्थात मुहूर्त निकालने के लिए जिन पांच अंगों की आवश्यकता पड़ती है वे पांचों अंग पंचांग में स्पष्ट किये होते है। अंग 1. वार 2. तिथि 3. नक्षत्र 4. योग 5. करण।
हम यह जानते हैं कि वार के नाम का आधार, सूर्योदय के समय उदित होरा होती है। वह उस दिन का स्वामी होता है। शुभ कार्य कर ग्रहों के दिनों में करना पसन्द नहीं करते। इसलिये शुभ वारों का चयन किया जाता है।
हमारे मनीषियों ने हजारों वर्षों के अध्ययन तथा अनुभव के आधार पर पाया कि कुछ वार कुछ विशेष तिथि पर शुभ फल नहीं देते। इसलिये विशेष दिन, विशेष तिथि पर शुभ कार्य करना मना कर दिया। जैसे रविवार को पंचम तिथि तथा द्वादशी, सोमवार को षष्ठी तिथि तथा एकादशी, मंगलवार को सप्तमी तथा दशमी आदि शुभ कार्य के लिये माना है। ये कुयोग के नाम से जानी जाती है। विशेष वार को विशेष नक्षत्र होने पर शुभ कार्य नहीं किया जाता। जैसे यदि सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र हो तो शुभ कार्यों में विघ्न पड़ता है। इसी प्रकार वार, तिथि तथा नक्षत्र से बनने वाले भी कुयोगों का हमारे मनीषियों ने वर्णन किया है। यह सारा विवरण हमें पंचांग में किया कराया मिल जाता है। ज्योतिषी का समय, वह परिश्रम बच जाता है। इसलिये प्रत्येक ज्योतिषी के पास उस वर्ष का पंचांग होता है जिस वार तथा वर्ष का वह शुभ मुहूर्त निकालना चाहता है। शुभ मुहूर्त में किये गये काम में सफलता व समृद्धि प्राप्त होती है। यह पहले ही लिखा जा चुका है कि ज्योतिष को तीन स्कंधों में बांटा गया है। प्रस्तत पुस्तक को अधिक लोकोपयोगी बनाने के लिए इसमें फलित को विशेष महत्त्व न देकर गणित के प्रत्येक अंग का दिग्दर्शन कराने की चेष्टा की गई