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वार वार का मान चौबीस घंटे या साठ घटी का होता है। सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक के समय को वार कहते हैं। सूर्योदय के समय जिस ग्रह की होरा होती है। उस दिन उसी ग्रह के नाम का वार रहता है। पृथ्वी से ग्रहों की दूरी अनुसार लिखा जाए तो इस प्रकार लिखेंगे। शनि, गुरु, मङ्गल, रवि, शुक्र, बुध और चंद्रमा ये ग्रह पृथ्वी से क्रमशः दूर शनि सबसे दूर, बृहस्पति उससे निकट मंगल उससे भी निकट है। इसीप्रकार अन्य ग्रहों को समझें। एक दिन में 24 होराएं होती हैं। एक-एक घंटे की एक-एक होरा होती है। अर्थात् घंटे का दूसरा नाम होरा है। प्रत्येक होरा का स्वामी अधः कक्षाक्रम से एक-एक ग्रह होता है। हमारे ऋषि मुनियों की दृष्टि सृष्ट्यारंभ में सबसे पहले सूर्य पर पड़ी, इसलिए पहली (1) होरा का स्वामी सूर्य को माना जाता है। अतएव पहले वार का नाम आदित्यवार या रविवार है। तत्पश्चात् उस दिन की 2 री होरा का नाम स्वामी उसके पासवाला शुक्र, 3री का बुध, 4थी का चंद्रमा, 5वीं का शनि, 6ठी का गुरु, 7वीं का मंगल, 8वीं का रवि, 9वीं का शुक्र, 10वीं का बुध, 11वीं का चंद्रमा, 12वीं का शनि, 13वीं का गुरु, 14वीं का मंगल, 15वीं का रवि, 16वीं का शुक्र, 17वीं का बुध, 18वीं का चंद्रमा, 19वीं का शनि, 20वीं का बृहस्पति, 21वीं का मंगल, 22वीं का रवि, 23वीं का शुक्र और 24वीं का बुध स्वामी होता है। पश्चात् दूसरे दिन की पहली होरा का स्वामी चंद्रमा पड़ता है, अतः दूसरा वार सोमवार या चंद्रवार माना जाता है। इसीतरह तीसरे दिन की पहली होरा का स्वामी मंगल चौथे दिन की पहली होरा का स्वामी बुध, पांचवें दिन की पहली होरा का स्वामी गुरु, छठे दिन की पहली होरा का स्वामी शुक्र एवं सातवें दिन की पहली होरा का स्वामी शनि होता है। इसलिए क्रमशः रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ये वार माने जाते हैं।
नक्षत्र
अनेक ताराओं के विशिष्ट आकृतिवाले पुंज को 'नक्षत्र' कहते हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मण्डल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष में ये नक्षत्र विशिष्ट स्थान रखते हैं। आकाश मण्डल में इन समस्त तारक-पूंजों को ज्योतिष शास्त्र ने 27 भागों में बांट दिया
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