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तीस दिन को सावन मास कहते है तथा सूर्य के अश्विनी के प्रथम बिन्दु से पुनः उस बिन्दु पर दुबारा आने तक को सौर वर्ष कहते हैं। भारतीय पद्धति में स्थानीय समय को मान्यता दी जाती है। जब कि पाश्चात्य पद्धति में मानक समय का व्यवहार किया जाता है। 5. भारतीय पद्धति में खगोलशास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र एक-दूसरे के भिन्न अंग है। दोनों का विकास साथ-साथ हुआ। पाश्चात्य पद्धति में खगोल शास्त्र का विकास एक भौतिक विज्ञान की भाँति हुआ। 6. भारतीय पद्धति में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह तथा पिण्डों के अलावा उनकी गति, पात (nodes) भदोच्च बिन्दु, युति बिन्दु भाद्री आदि उपग्रहों का भी विस्तार से अध्ययन हुआ है। जब कि पाश्चात्य पद्धति में ऐसा कुछ भी नहीं
है।
परिभाषाएं
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चित्र 1
भौगोलिक विषुवत् रेखा या भू-मध्य रेखा-चित्र 1 में गोल को पृथ्वी मान ले तो ग एवं घ पृथ्वी के दो ध्रुव है। बृहत् वृत कल ख वह काल्पनिक भौगोलिक विषुवत् रेखा या भू–मध्य रेखा है। भू-मध्य रेखा वह बृहत् वृत है जो पृथ्वी के चारों ओर इसके अक्ष (धूरी) जिसके चारों ओर पृथ्वी घूमती है। पर लम्बवत् है। पृथ्वी का अक्ष वस्तुतः उत्तरी ध्रुव ग तथा दक्षिणी ध्रुव घ को मिलाने वाली रेखा ही है। भू-मध्य रेखा इस पर समकोण बनाती है।