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7-8. Astronomy Related to Astrology
पाठ- 7-8. ज्योतिष सम्बन्धित खगोल शास्त्र
खगोल शास्त्र वह विज्ञान है जिसमें ब्रह्माण्ड में स्थित विभिन्न ग्रहों तथा अन्य पिण्डों का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। हम इस अध्याय में केवल ज्योतिष से सम्बन्धित विषयों का ही अध्ययन करेंगे।
सबसे आरम्भ में भारतीय तथा पाश्चात्य मत में भिन्नता का अध्ययन संक्षित में करेंगे।
पाश्चात्य मत से ब्रह्माण्ड का निर्माण 200 करोड़ वर्ष पूर्व एक महा विस्फोट (Big-bang) से हुआ। भारतीय मत से ग्रहों एवं अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं की सृष्टि के आरम्भ होने से अन्त तक, कुल परिभ्रमण की संख्याओ का अनुमान किया गया।
2. पाश्चात्य मत में खगोलीय गणनाएं सूर्य को केन्द्र मान कर की जाती है। भारतीय मत में खगोलीय गणनाएं पृथ्वी को केन्द्र मान कर की जाती है।
3. पाश्चात्य मत में खगोलीय गणनाएं चलायमान बिन्दु से की जाती है। बसंत संपात के समय सूर्य नक्षत्र मंडल जहां होता है उसे मेष राशि का प्रथम बिन्दु मान लेते है जो प्रत्येक वर्ष 50"-52" खिसक जाता है। इसलिए उसे चलायमान बिन्दु कहते है। भारतीय मत में खगोलीय गणनाएं एक स्थिर बिन्दु से करते हैं जो मेष राशि (अश्विनी नक्षत्र) का प्रारम्भिक बिन्दु है। स्थिर एवं चलायमान मेष राशि के बिन्दु के बीच को कोणीय दूरी को अयनांश कहते हैं जो 1.1.2001 को 23-52' है।
4. पाश्चात्य मत में दिन की गणना पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के अनुसार की जाती है जब कि भारतीय पद्धति में दिन की गणना सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की जाती है मास की गणना चन्द्रमा के पृथ्वी के चारो ओर परिभ्रमण पर आधारित है तथा चन्द्रमा को कलाओं के अनुसार है। एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक के समय को एक चन्द्र मास कहते है।