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इस प्रकार रेखाओं का चक्र बनाकर 28 नक्षत्र, अभिजित् के साथ, क्रम से नाम लिखा जाता है। 1. वर्तमान सूर्य नक्षत्र जहां हो वहां लिख ले। यदि जन्म नक्षत्र का सूर्य नक्षत्र से वेध हो तो जीवन में अशुभ का भय रहता है। 2. जन्म नखत्र से 19वें नक्षत्र का वेध हो तो भय तथा चिन्ता 3. जन्म नक्षत्र से 10वें नक्षत्र का वेध हों तो धन इति जन्म नक्षत्र पहला- अंन्ध्र नक्षत्र, 10वां- अनुजन्म तथा 19वां नक्षत्र-त्रिजन्म नक्षत्र कहलाता है। कई बार इसको तारा भी कहते है। इसको केवल गोचर के सूर्य नक्षत्र से ही नहीं देखना चाहिये अपितु, मंगल, शनि, राहु तथा केतु के नक्षत्र से भी देखना चाहिये। जब जब गोचर में शनि आदि अशुभ ग्रह 1.10.19 नक्षत्र पर गोचर करेंगे जातक को अशुभ फल प्राप्त होता है।
तारा तारा का भी अर्थ नक्षत्र ही है। जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है। उसे जन्म तारा कहते है। द्वितीय तारा का सम्पत, तृतीय को विपत, चतुर्थ को क्षेम पंचम को प्रत्यरि षष्ठ को सोधक ,सप्तम-वेध, अष्टम-मित्र तथा नवम- अधिमित्र कहलाती है। इनका तीन पर्याय 1.10.19 में विभाजित करते हैं। दूसरे को 2.11.20, तीसरे को 3.12.21 इस क्रम से 27 तारा तीन पर्याय में विभाजित होती है। सूर्य 2,4,8,9,11,13,24वीं तारे से गोचर करता है तो शुभ फल प्राप्त होता है। अशुभ फल 1,14,16,19,23 तारा चन्द्रमा शुभ 4,6,8,9,11,13,15,26,27 अशुभ 1,3,5,7,12,14,19,21 मंगल शुभ 9,11,17,22,24 अशुभ 1,3,5,7,12,14,19,21 बुध शुभ 4,6,13,15,17,20,22,24,26,27 गुरु तथा शुक्र शुभ 1,3,7,10,12 तथा 19
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