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________________ शनि शुभ 2,4,6,8,13,15,17,18,20, राहु शुभ 22,24 केतु युम 22,24 ऊपर हमने शास्त्रो के अनुसार शुभ स्थान लिखे हैं परन्तु यह मान्यता है कि जन्म तारा, विपति, प्रत्यरि, वध तारा अशुभ (1,3,5,7) होती है। जब-जब गोचर करता है तथा दशान्तर दशा भी इन तारा स्वामियों को चल रही होती है तो अशुभ फल प्राप्त होता है। यदि शुभ ग्रह बृहस्पति, शुक्र शुभयुक्त बुध तथा पक्षबली चन्द्रमा, लग्न से त्रिकोण (5,9) तथा केन्द्र (1,4,7,10) भाव से गोचर कर रहे होते हैं तथा तारा भी शुभ होती है तो शुभ फल प्राप्त होता है। परन्तु जब शुभ ग्रह शुभ तारा से गोचर करते हैं परन्तु शुभ भाव से गोचर नहीं करते तो शुभ फल प्राप्ति नहीं होता। सम फल प्राप्त होता है। जब अशुभ ग्रह (शनि, मंगल, सूर्य, राहु तथा केतु, पक्ष बलहीन चन्द्रमा एवं अशुभ युक्त बुध) लग्न से 8 तथा 12 भाव से गोचर करते हैं तथा अशुभ तारा से गोचर करते हैं अशुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि जन्म कुण्डली में भी ग्रह पीड़ित हो तो अशुभ फल बड़े जाते है। यदि ग्रह केन्द्र या त्रिकोण से गोचर करते है तथा तारा अशुभ हो तो समफल हो जाता है। इस प्रकार गोचर के ग्रहों का भाव, दशान्तरदशा की तारा तथा ग्रह की तारा का समन्वय बिठा कर गोचर के ग्रह का फल कहना ज्यादा उत्तम रहता है। 4. अष्टक वर्ग गोचर के ग्रहों के लिए अष्टक वर्ग एक उत्तम पद्धति है। श्री के. एन राव इस पद्धति का बहुत प्रयोग करते है। भिन्न अष्टक वर्ग तथा समुदाय अष्टक वर्ग (SAV) का प्रयोग किया जाता है। अष्टक वर्ग के आठ अंग होते हैं। आठों अंगों पर भिन्न-भिन्न ग्रहों का शुभ या अशुभ प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक अंग पर समस्त ग्रहों का प्रभाव भिन्न अष्टक वर्ग में मिलता। समुदाय अष्टकवर्ग में जन्म कुण्डली में किस-किस भाव पर समस्त ग्रहों का क्या प्रभाव है अंको के द्वारा दर्शाया जाता है। भाव पर कम से कम 28 अंक प्राप्त हो तो शुभ यदि 28 अंक से कम हो तो अशुभ फल होता है। जितने अंक कम होंगे अशुभ फल 135
SR No.009373
Book TitleSaral Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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