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1. लग्न का बल हम सभी जानते हैं कि हम विंशोतरी दशा का प्रयोग करते हैं विंशोतरी दशा के नियमों के अनुसार त्रिकोण के स्वामी शुभ फल देते है। हम यह भी जानते हैं कि गोचर का फल योग तथा दशान्तर दशा के अधीन रहता है। इसलिए यदि योग तथा दशान्तर दशा शुभ है तो गोचर का फल अशुभ नहीं हो सकता। दूसरा यदि जन्म कुण्डली में चन्द्रमा के पास पक्षबल प्राप्त है तथा शुभ दृष्ट है, केन्द्र या त्रिकोण में स्थित है तो शनि उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता तीसरा यदि शनि त्रिकोण का स्वामी है तथा शुभ स्थित है, राशीश, नवांशेश तथा नक्षत्र भी शुभ है तो शनि की साढ़े साती भी शुभ फल देगी। इसलिए साढ़े साती का फल जन्म कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि के बल पर निर्भर करता है। 2. गोचर में नक्षत्र वेध ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते रहते है। सूर्य की भाँति नक्षत्र भी स्थिर है जिसके प्रभाव में ग्रह रहते है। मैं तो कई बार विद्यार्थियों से कहता हूँ कि ग्रह तो केवल नक्षत्रों के प्रभाव को प्रतिबिम्बित करते हैं। नक्षत्र का प्रभाव मुख्य है। इसके प्रभाव को जानने के लिए तप्तशलाखा का प्रयोग करते हैं।
पर्व कृ. रो. म. अ पुन पु. आ.
म
भ.
अ.
उत्तर
दक्षिण
पू.भा उ.भा रे.
पू.फा. उ.फा ह चि. स्वा वि.
श
ध.
श्र.
अ.
उषा. पूषा. म पश्चिम
ज्ये. अनु.
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