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शुभ व अशुभ योग यदि लग्न में शुभ ग्रह हो या लग्न से द्वितीय तथा द्वादश भाव में शुभ ग्रह हो तो शुभ योग होता है। यदि पाप ग्रह हो तो अशुभ योग होता है। अशुभ योग में जातक पाप कर्म, कामुक तथा ईर्ष्यालु होता है। पर्वत योग 1. यदि सभी शुभ ग्रह केन्द्र में किसी भी प्रकार से स्थित हो तथा 6,8 भाव में कोई भी ग्रह स्थित न हो, यदि हो तो शुभ ग्रह स्थित हो। 2. लग्नेश तथा द्वादशेश परस्पर केन्द्र में स्थित हो तथा मित्र ग्रह की दृष्टि हो तो पर्वत योग होता है। ऐसा व्यक्ति वाककुशल, भागवत् वेत्ता विद्वान एवं यशस्वी होता है। चामर योग लग्नेश उच्चगत होकर केन्द्र में स्थित हो तथा गुरु से दृष्ट हो तो चामर योग में मनुष्य राज्य पूज्य विद्वान, वाक्कुशल, पण्डित, चिरंजीवी होता
मालिका योग लग्न से लगातार सात भावों में सब सात ग्रह स्थित हो (राहु-केतु ग्रह नहीं है) तो मालिका योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक धनी, अनेक वाहनों का स्वामी होता है। लक्ष्मी योग यदि भाग्येश केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तथा लग्नेश बलवान् हो तो लक्ष्मी योग होता है। इस योग में जातक सुन्दर, गुणी धार्मिक बहुपुत्र व धन वाला होता है। लग्नाधियोग यदि लग्न से 6,7,8 भाव में शुभ ग्रह हो और अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हो तो लग्नाधियोग बनता है
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