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शुक्र पति/पत्नी, विवाह, रतिक्रिया, प्रम सम्बन्ध, संगीत, काव्य, इत्र सुगन्ध, घर की सजावट ऐश्वर्य, दूसरों के साथ सहयोग, फूल फूलदार वृक्ष, पौधे सौंदर्य, आखों की रोशनी, आभूषण, जलीय स्थान, सिल्कन कपड़ा, सफेद रंग, वाहन, शयन कक्ष आदि सुख सामग्री आदि । शनि आयु, दुख, रोग, मृत्यु संकट अनादर, गरीबी, आवजीवका, अनैतिक तथा अधार्मिक कार्य, विदेशी भाषा, विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा मेहनत वाले कार्य, कृषीगत व्यवसाय, लोहा, तेल, खनिज पदार्थ, कर्मचारी, सेवक नौकरियां, योरी, क्रूर कार्य, वृद्ध मन्ति, पंगुता, अंग-भंग, लोभ, लालच बिस्तरे पर पड़े रहना, चार दिवाने में बन्द रहना, जेल, हास्पीटल में पड़े रहना, वायु, जोड़ों के दर्द, कठोर वाणी आदि। राहु दादा का कारक ग्रह है। कठोर वाणी, जुआ, भ्रामक तर्क, गतिशीलता, यात्राएं, विजातीय लोग, विदेशी लोग, विष, चोरी, दुष्टता, विधवा, त्वचा की बिमारियां होठ, धार्मिक यात्राएं दर्द आदि। केतु नाना का कारक ग्रह है। दर्द, ज्वर, घाव, शत्रुओं को नुकसान पहुंचाना, तांत्रिक तन्त्र, जादू-टोना, कुत्ता, सींग वाले पशु, बहुरंगी पक्षी, मोक्ष का कारक ग्रह है। अब तक हमने इस अध्याय में भाव, भावों कारक तथा ग्रहों के कारकत्व पढ़े। इनका क्या लाभ है मानो हम चतुर्थ भाव का विश्लेषण कर रहे हैं। चतुर्थ भाव तथा चतुर्थेश पीड़ित है। चतुर्थ भाव वाहन, सुख, अचल सम्पत्ति, भूमि, शिक्षा तथा माता को दर्शाता है, किसको कष्ट होगा या किसके द्वारा कष्ट प्राप्त होगा? इसका निर्णय कारक ग्रह करता है। यदि चतुर्थ भाव तथा भावेश के साथ चन्द्रमा पीड़ित है तो माता को कष्ट, शुक्र पीड़ित है तो वाहन के द्वारा कष्ट, बुध पीड़ित है तो शिक्षा में कष्ट होता है। इस प्रकार घटना का सम्बन्ध भाव, भावेश तथा कारक ग्रह से होता है।