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9. नवम भाव में शुक्र हो तो जातक धर्मात्मा, राजप्रिय, पवित्रतीर्थ यात्राओं का कर्ता, दयालु, प्रेमी, गृहसुखी, गुणी, चतुर एवं आस्तिक होता है।
10. दशम भाव में शुक्र हो तो जातक गुणवान्, दायालु, विलासी, ऐश्वर्यवान्, भाग्यवान्, न्यायवान् विजयी, गानप्रिय, धार्मिक ज्योतिषी एवं लोभी होता है।
11. ग्यारहवें भाव में शुक्र हो तो जातक परोपकारी, लोकप्रिय, जौहरी, विलासी, वाहनसुखी, स्थिरलक्ष्मीवान्, धनवान् गुणज्ञ, कामी एवं पुत्रवान् होता है । 12. बारहवें भाव में शुक्र होतो जातक धनवान्, परस्त्रीरत, बहुभोजी, शत्रुनाशक, मितव्ययी, आलसी, पतित, धातुविकारी, स्थूल एवं न्यायशील होता है ।
शनि
1. लग्न (प्रथम) में शनि मकर, कुम्भ तथा तुला का हो तो धनाढ्य, सुखी, धनु और मीन राशियों में हो तो अत्यन्त धनवान और सम्मानित एवं अन्य राशियों का हो तो अशुभ होता है।
2. द्वितीय भाव में शनि हो तो जातक कटुभाषी, साधुद्वेषी, मुखरोगी, और कुम्भ या तुला का शनि हो तो धनी, लाभवान् एवं कुटुम्ब तथा भ्रातृवियोगी होता है।
3. तृतीय भाव में शनि हो तो जातक नीरोगी, विद्वान् योगी, मल्ल, शीघ्रकार्यकर्ता, सभाचतुर, चंचल, भाग्यवान् शत्रुहन्ता एवं विवेकी होता है।
4. चतुर्थभाव में शनि हो तो जातक अपयशी, बलहीन, धूर्त, कपटी, शीघ्रकोपी, कृशदेही, उदासीन, वातपित्तयुक्त एवं भाग्यवान् होता है।
5. पंचम भाव में शनि हो तो जातक आलसी, सन्तानयुक्त, चंचल, उदासीन, विद्वान, भ्रमणशील एवं बातरोगी होता है।
6. षष्ठभाव में शनि हो तो जातक बलवान्, आचारहीन, व्रणी, जातिविरोधी, श्वासरोगी, कण्ठरोगी, योगी, शत्रुहन्ता भोगी एवं कवि होता है।
7. सप्तम भाव में शनि हो तो जातक क्रोधी, कामी, विलासी, अविवाहित रहना या दुःखी विवाहित जीवन, धन सुखहीन, भ्रमणशील, नीचकर्मरत, स्त्रीभक्त एवं आलसी होता है।
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