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होता है।
12. द्वादश भाव में गुरु हो तो जातक मितभाषी, योगाभ्यासी, परोपकारी, उदार, आलसी, सुखी, मितव्ययी, शास्त्रज्ञ, सम्पादक, लोभी, यात्री एवं दुष्ट चित्तवाला होता है।
शुक्र
1. लग्न ( प्रथम ) में शुक्र हो तो जातक सुन्दरदेही दीर्घायु राजप्रिय कामी, उच्च सरकारी पद पर आसीन, विलासी, भोगी, विद्वान्, प्रवासी मधुरभाषी, प्रसिद्ध सुखी एवं ऐश्वर्यवान् होता है।
2. द्वितीयभाव में शुक्र हो तो जातक भाग्यवान्, साहसी, समयज्ञ, मिष्टान्नभोजी, यशस्वी लोकप्रिय, जौहरी, दीर्घजीवी, कवि कुटुम्बयुक्त, सुखी एवं धनवान् होता
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3. तृतीय भाव में शुक्र हो तो जातक विद्वान्, कलाकार, आलसी, कृपण, धनी, सुखी, पराक्रमी, भाग्यवान् बहने भाईयों से अधिक एवं पर्यटनशील होता है।
4. चतुर्थ भाव में शुक्र हो तो जातक बलवान्, परोपकारी, सुन्दर व्यवहार कुशल, विलासी, दीर्घायु, पुत्रवान् भाग्यवान्, सुखी दानी वाहनों का स्वामी एवं आस्तिक होता है ।
5. पंचम भाव में शुक्र हो तो जातक विद्वान् प्रतिभाशाली वक्ता, कवि, पुत्रवान्, लाभयुक्त, व्यवसायी, शत्रुनाशक, उदार, दानी, सद्गुणी न्यायवान् एवं आस्तिक होता है।
6. षष्ठभाव में शुक्र हो तो जातक मितव्ययी शत्रुनाशक, स्त्रीप्रिय, स्त्रीसुखहीन, बहुमित्रवान्, वैभवहीन, दुराचारी, मूत्ररोगी, दुखी एवं गुप्तरोगी होता है।
7. सप्तमभाव में शुक्र हो तो जातक लोकप्रिय, धनिक, चिन्तित, विवाह के बाद भाग्योदय, साधुप्रेमी, स्त्री से सुख, कामी, भाग्यवान् गानप्रिय, विलासी, अल्पव्यभिचा चंचल एवं उदार होता है।
8. अष्टम भाव में शुक्र हो तो जातक ज्योतिषी, क्रोधी, मनस्वी, दुखी, गुप्तरोगी. पर्यटनशील, परस्त्रीरत, विदेशवासी, निर्दयी, गुप्तविद्याओं के प्रतिरुचि एवं रोगी होता है।
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