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8. अष्टम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान् स्थूलशरीरी, उदार प्रकृति, कपटी, गुप्तरोगी, वाचाल, डरपोक, कुष्ठरोगी एवं धूर्त होता है। 9. नवम भाव मे शनि हो तो जातक धर्मात्मा, साहसी, प्रवासी, कृशदेही, भीरु, भ्रातृहीन, शत्रुनाशक रोगी वातरोगी, भ्रमणशील एवं वाचाल होता है। 10. दशम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान, ज्योतिषी, राजयोगी न्यायी, नेता, धनवान्, राजमान्य, उदरविकारी, अधिकारी, चतुर, भाग्यवान् परिश्रमी, निरुपयोगी एवं महत्त्वाकांक्षी होता है। 11. ग्यारहवें भाव में शनि हो तो जातक बलवान् विद्वान, दीर्घायु, शिल्पी, सुखी, चंचल, क्रोधी, योगाभ्यासी, नीतिवान् परिश्रमी, व्यवसायी, पुत्रहीन, कन्याप्रज्ञ एवं रोगहीन होता है।
12. बारहवें भाव में शनि हो तो जातक आलसी, दुष्ट, व्यसनी, व्यर्थ व्यय करने वाला, अपस्मार, उन्माद का रोगी, मातुलकष्टदायक, अविश्वासी एवं कटुभाषी होता है।
राहु 1. लग्न (प्रथम) में राहु हो तो जातक कामी, दुर्बल, मनस्वी, अल्पसन्तति युक्त, राजद्वेषी, नीचकर्मरत दुष्ट, स्तकरोगी, स्वार्थी एवं बात-बात पर सन्देह करने वाला होता है। 2. द्वितीय भाव में राहु हो तो जातक संग्रहशील, अल्पधनवान, कठोरभाषी, कुटुम्बहीन, अल्पसन्तति, मात्सर्ययुक्त एवं परदेशगामी होता है। 3. तृतीय भाव में राहु हो तो जातक योगाभ्यासी, विद्वान्, व्यवसायी, पराक्रमशून्य, दृढ़विवेकी, अरिष्टनाशक, प्रवासी, दीर्घायु एवं बलवान् होता है। 4. चतुर्थभाव में राहु हो तो जातक असन्तोषी, दुखी, अल्पभाषी, मिथ्याचारी, उदरव्याधियुक्त, कपटी, मातृक्लेशयुक्त एवं क्रूर होता है। 5. पंचम भाव में राहु हो तो जातक शास्त्रप्रिय, कार्यकर्ता, भाग्यवान्, उदररोगी, मतिमन्द, कुल धननाशक, धनहीन, नीतिदक्ष एवं सन्तान के लिए अशुभ होता है। 6. षष्ठभाव में राहु हो तो जातक शत्रुहन्ता, कमरदर्द पीड़ित, अरिष्टनिवारक,
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