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उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पीड़न की अग्नि में भी सुरक्षित रहकर फीनिक्स ने इस ज्ञान की सुरक्षा के निरन्तर प्रयास किये और जिस विज्ञान को अन्धविश्वास घोषित किया जा चुका था, वह एक बार फिर सत्य बनकर सामने आया। इस प्रकार के अनेक प्रमाण हैं जो इसकी सत्यता को साबित करते हैं कि यह एक सत्य और प्रमाणिक विज्ञान है। ईशा से 423 वर्ष पूर्व यूनानी दार्शनिक एनेक्सागोरस कीरोमेंन्सी का उपयोग ही नहीं बल्कि शिक्षा भी देता था। इन्ही की तरह अरस्तू विलसाइड, कार्डमिस, पिल्लनी थे, जो हिस्पेनस को इस विज्ञान पर एक पुस्तक लिखकर भेंट की थी, उसमें लिखा था- यह ग्रन्थ एक ऐसा अध्ययन है जो जिज्ञासु और सुविकसित मस्तिष्क वाले व्यक्ति के पढ़ने योग्य है। इन विद्वानों ने जब मानव का अध्ययन किया तो मानव के चेहरे उसकी नाक, कान, आँख आदि की स्वाभाविक स्थिति भली भांति पहचान लिया। इसी प्रकार मानव की हथेली में बनी मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा की जानकारी प्राप्त करके उनकी स्वाभाविक स्थिति को मान्यता प्रदान की। इस विज्ञान की खोज और अध्ययन में उन विद्वानों ने जो साधना की, जो समय लगाया उसी के कारण वे हथेली की रेखाओं और चिह्नों को ये नाम दे सकें। जिस रेखा को मानसिकता का सम्बन्धी समझा उसे मस्तिष्क रेखा का नाम दिया। स्नेह से सम्बधित रेखा को हृदय रेखा तथा जीवन की अवधि से सम्बन्धित रेखा को जीवन रेखा का नाम दिया इसी प्रकार चिह्न और पर्वत के भी उन्हीं के अनुरुप नाम दिये।
रेखा विज्ञान की सत्यता
किसी विषय के बारे में तभी विश्वास होता है, जब उसे अंतरात्मा द्वारा देख या समझ लिया जाय । एक अणु को भी अपने अस्तित्व में अध्ययन के अयोग्य ठहराना उचित नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति यह धारणा बना ले कि हस्त विज्ञान विचारणीय विषय नहीं है तो यह उसका कोरा भ्रम होगा। क्योंकि अनेक बड़ी-बड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण सच्चाइयां और वास्तविकताएं जिन्हें कभी नगण्य समझा जाता था वे अब असीमित शक्ति का साधन बन गयी हैं।