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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
RI.
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व. व.
४८.
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४३. रं आग्नेय बीज, उग्रकर्म कार्यकारक, परविद्याछेदक, स्तंभादि कारक
नपुं. आदित्य ४४.
इन्द्रबीज धन-धान्य सम्पत्कर, स्तंभन, मोहनकारक - पीत वरुणबीज, विष-मृत्यु नाशक, वश्याकर्षण, शान्तिकारक
- श्वेत ४६. शं सूर्यबीज, एक लाख जप से श्री कारक, धर्म, अर्थ
काम व मोक्ष प्रदाता, वश्याकर्षण, शान्ति, पौष्टिक - ४७. षं वाग्बीज, धर्मार्थकाम-मोक्ष कारक, स्तंभन, मोहन पुं. पीतमाबील
लक्ष्मीबीज-इसका एक लाख जप करने से लक्ष्मी की
प्राप्ति होती है, सर्वकार्यकर्ता, वश्यकर्ता ४९. हं
शिवबीज, दस हजार जप से कार्य सिद्धि, सर्वकर्मकर्ता, चिन्तित मनोरथसाधक ___ नपुं. - नृसिंह बीज, दस हजार जप से मृत्यु नाश होता है, सर्वरक्षक, सर्वप्रिय, त्रिकालज्ञान
पु. पीत नोट- इन अक्षरों की सिद्धि पृथक-पृथक की जाती है। ह्रींकार को मध्य में और अकारादि
क्ष पर्यंत अक्षरों को लिखकर उनमें अक्षरों की मणिरूप स्थापना कर उनमें जप करने पर सब कार्य सिद्ध होते हैं।
वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर सर्व- शक्तिशाली मंत्र है। उसके गुनने व मनन करने से विशिष्ट शक्ति का उपार्जन होता है, इससे इष्ट कर्म की सिद्धि होती है और विविध प्रकार के भय से रक्षण होता है। हम सिद्धियां व चमत्कार चाहते हैं, सामान्य परिश्रम से ही सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं और जब निष्फल हो जाते हैं तो निराश होकर सभी ओर से आस्थाहीन बन जाते हैं- मंत्रों पर, शब्दों पर विश्वास नहीं होता, परन्तु पूरी तरह विषय को न समझ सकने के कारण हमें भटकाव हो जाता है। वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर के उच्चारण से मनुष्य के शरीर पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। ओकल्ट रिसर्च कॉलेज के प्रिंसिपल करमकर ने एक बार बताया कि 'र' अक्षर को बिन्दु सहित यानी 'र' का एक हजार बार उच्चारण करें तो आपके शरीर की उष्णता एक डिग्री बढ़ जाएगी व 'ख' को बिन्दु सहित उच्चारण करते रहें तो आपके लीवर की शिकायत मिट जाएगी। इन्हीं अक्षरों से बीजाक्षर बनते है और उन्हीं से मंत्र और वे अपना विशिष्ट कार्य करते हैं। यहां यह और स्पष्ट करना चाहता हूं कि प्रत्येक अक्षर को अनुस्वार लगाने के बाद ही मनन करना चाहिए जैसे- अं ऊं कं सं दं आदि। प्रत्यक वर्ण को ह्रींकार से युक्त करके जप करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार ह्रीं रं ह्रीं रं ह्रीं रं ह्रीं आदि।
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