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मुनि प्रार्थना सागर
मंत्र यंत्र और तंत्र
अनुस्वार सहित मातृका अक्षरों से सीधे क्रम अथवा वर्णमाला से पृथक प्रत्येक वर्ण को साथ लगाकर जपने से शीघ्र ही सिद्धि मिलती हैं । सब मंत्रों को आदि में हृल्लेखा (ह्रीं), कामबीज ( क्लीं ) और श्री बीज को मंत्र की शुद्धि के लिए मंत्र में लगाकर जप करना चाहिए। भार नामक मंत्राक्षर से सम्पुट किया जाने से दुष्ट मंत्र भी सिद्ध हो जाता है और जिसकी जिसमें भक्ति होती है वह मंत्र भी सिद्ध हो जाता है। मंत्र महोदधि के अनुसार एक वर्ण, तीन वर्ण, पांच वर्ण, छ: वर्ण, दस वर्ण, आठ वर्ण, नौ वर्ण, ग्यारह वर्ण और बत्तीस वर्णवाले मंत्रों को बिना विचारे सिद्ध करना चाहिए । स्वप्न में पाये हुए, स्त्री से पाये हुए, माला, मंत्र, नृसिंह मंत्र, प्रासादा, "हूं" सूर्य मंत्र बाराह मंत्र मातृका अक्षरों पर (ह्रीं) त्रिपुरा मंत्र और काम मंत्र जप से सिद्ध हो जाते हैं। गरुड़ मंत्र, बौद्ध मंत्र और जैन मंत्रों में भी सिद्ध आदि का शोधन न करें। इसके अतिरिक्त अन्य मंत्रों की शुद्धि अत्यन्त आवश्यक
है ।
मंत्र अधिकार
गृहीत शत्रु मंत्र को त्याग करने की विधि
यदि भूल से शत्रु मंत्र का अनुष्ठान आरंभ कर दिया हो तो उसके त्याग करने की विधि भी है। किसी उत्तम दिन में सर्वतोभद्रमण्डल में कलश की स्थापना करके मंत्र को उल्टा बोलते हुए कलश को जल से भरे । उस पर वस्त्र ढककर उसमें देवता का आह्वानन करें। फिर उसके सामने अग्निकुण्ड बनाकर उसमें अग्नि की प्रतिष्ठा करके ग्रहण किए हु मूल मंत्र को उल्टा करके घी की एक सौ आठ आहुतियां देवें । फिर खीर और घी की दिक्पालों को बलि देवें । इसके पश्चात देवों के देव भगवान ऋषभदेव से निम्नलिखित शब्दों से प्रार्थना करें - "हे भगवान मुझ चंचल बुद्धि वाले ने मंत्र की अनुकूलता बिना विचार किये ही जो इस मंत्र को ग्रहण करके इसका पूजन किया है, इससे मेरे मन में क्षोभ हो रहा है। हे भगवान! आप कृपा करके मेरे मन के क्षोभ को दूर कीजिये । और मेरा उत्तम कल्याण करके मुझे अपनी निर्मलभक्ति दीजिये" । इस प्रकार प्रार्थना करके उस मंत्र को ताड़पत्र कपूर- अगर और चन्दन से उल्टा लिखकर पहले उसका पूजन करें और फिर उसको अपने सिर से बांधकर उस घड़े जल से स्नान करें। उस कलश में फिर से जल भरकर उसके मुख में उस पत्र को डाल दें। फिर उस घड़े का पूजन करके उसको किसी नदी या तालाब में डालकर सच्चे सात साधुओं को आहार दान दें अथवा उत्तम श्रावक को भोजन करावें । इस प्रकार वह उस मंत्र के कष्ट से छूट जाता है।
दुष्ट मंत्र को जपने की विधि
यदि मंत्र उपरोक्त प्रकार से अनेक बार शोधन किया जाने पर भी शुद्ध न हो तो उसके दोष को दूर करने के वास्ते उसकी आदि में ह्रीं क्लीं' श्रीं, बीजों को लगाकर जपें । अथवा ‘ॐ' के सम्पुट में जपा जाने से दुष्ट मंत्र भी सिद्ध हो जाता है। अथवा उल्टे या सीधे क्रम से वर्णमाला को लगाने से भी मंत्र सिद्ध हो जाता है।
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