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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
अर्थ- मंत्र साधना करने वाले शिष्य में निम्नलिखित गुण होने चाहिये- जो बुद्धिमान, चित्त को व इंद्रियों को संयम में रखने वाला, मौन से रहने वाला, देवता की आराधना करने को उद्यत हो, भय से रहित, मान से रहित, सुधी, सम्यग्दृष्टि, आलस्य रहित, पाप से डरने वाला, ग्रहण किए व्रतों को दृढ़ता से निर्वाह करने वाला, शील तथा उपवास से युक्त, धर्म तथा दानादि में लीन, मंत्र सिद्ध करने में वीर, दया भाव रखने वाला, अपने गुरु की विनय करने वाला, जप के समय ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, मेधावी, निद्रा को जीतने वाला, प्रसन्न रहने वाला, स्वाभिमानी, देव और शास्त्र की आराधना व भक्ति करने वाला, नि:शंक, सच बोलने वाला, पवित्र मन वाला, कामदेव को जीतने वाला, गुरु के बताये मार्ग पर चलने वाला, बीजाक्षरों को पहचानने वाला तथा अपने भाग्य के फल को भोगने को तैयार रहने वाला ही शिष्य हो सकता है।
मंत्र साधना के अयोग्य पुरुष सम्यग्दर्शन दूरो वाक्कुंठ श्छांद सो भय समेतः । शून्य ह्रदयोप लजो, मंत्रश्रद्धाविहीनश्च ॥ आलस्यो मंदबुद्धिश्य, मायावी क्रोधनो विटः । गर्वी कामी मदोद्रिक्तो, गुरुद्वेषी च हिसकः॥ अकुलीनोऽतिबालश्च, वृद्धोऽशीलोदयश्च नः। चर्मादि श्रृंगके शादि-धारी चाधर्मवत्सलः ॥ ब्रह्महत्यादिदोषाढ्यो, विरूपो व्याधिपीडितः।
ईदृशो न भवेद्योग्यो, मंत्रवादेषु च सर्वथा ॥ निम्न दोषों वाला मनुष्य कभी मंत्र साधक नहीं बन सकता, अत: गुरु को उचित है कि उसको मंत्र न दे
अर्थ- जो सम्यग्दर्शन से दूर हो ,पाप करने वाला, कुंठित वाणी वाला, भय करने वाला, शून्य हृदय, निर्लज्ज, मंत्रों में श्रद्धा न रखने वाला, आलसी, मंद बुद्धि,मायावी, क्रोधी, भोगी, इन्द्रियलोलुपी, कामी, गुरु से द्वेष रखने वाला, हिंसक, शीलरहित, अंगभंग, अत्यन्त बालक, अत्यन्त वृद्ध, १६ वर्ष से कम उमर वाला, रोगी हो वह साधक नहीं हो सकता।
गुरु का महत्व गुरुरेव भवेन्माता गुरुरेव भवेत् पिता। गुरुरेव सखा चैव, गुरुरेव भवेद्वतं ॥ गुरुः स्वामी गुरुर्भर्ता, गुरुर्विद्या गुरुर्गुरुः । स्वर्गो गुरुर्गुरुर्मोक्षो, गुरुबंधुः गुरुः सखा॥
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