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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर अर्थात् यह महामंत्र संसार में सारभूत है, तीनों लोकों में अद्भुत है, समस्त पापों को नष्ट करने वाला शत्रु है, जन्म-मरण रूप संसार का उच्छेदकर्ता है। विषमता रूप विष का हरणकर्ता है। कर्मों को निर्मूलन करने वाला है। यह मंत्र सिद्धि (मुक्ति) प्रदायक है, मोक्ष सुख का जनक है, केवलज्ञान रूपी मंत्र का उत्पादक है। यह राग-द्वेष विजेताओं का सूचक है, जन्म से लेकर निर्वाण तक जपने योग्य मंत्र है। इसलिए इस जपनीय महामंत्र का जाप करो, जाप करो। क्योंकि जैसे फूलों का सार इत्र है, दूध का सारभूत पदार्थ घी है, वैसे ही जिनशासन का सारभूत तत्व णमोकार महामंत्र है। जिसमें संक्षिप्त से चौदह पूर्व का सार सन्निहित है। यह महामंत्र जैन परम्परा से संबंधित है। किन्तु इसे तो जैन-अजैन कोई भी पढ़ सकते हैं। इसका उपयोग करके कोई भी सफलता प्राप्त कर सकता है। जैसे दूध से कोई भी मक्खन (घृत) निकाल सकता है, बस उसे उसकी विधि का ज्ञान होना चाहिए। जाति, लिंग, भाषा आदि उसमें बाधक नहीं बनते। ठीक ऐसे ही णमोकार महामंत्र से सभी लाभ ले सकते हैं। हमारे आचार्यों ने पंचपरमेष्ठी को पाँच रंगों में विभक्त किया है। अरहंतों का श्वेत रंग, सिद्धों का लाल रंग, आचार्यों का पीला रंग, उपाध्यायों का नीला रंग तथा साधुओं का श्याम रंग बताया गया है। हमारा सारा मूर्त संसार पौद्गलिक है। पुद्गल में भी वर्ण, रस, गन्ध वा स्पर्श होता है। वर्ण का हमारे शरीर और मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। नीला रंग जब शरीर में कम होता है तब क्रोध की मात्रा बढ़ जाती है। और नीले रंग की पूर्ति होने पर क्रोध स्वतः ही कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी होने पर स्वास्थ्य लड़खड़ाने लगता है। लाल रंग की न्यूनता से आलस्य और जड़ता बढ़ने लगती है। पीले रंग की कमी से ज्ञानतन्तु निष्क्रिय हो जाते हैं, तब समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। काले रंग की कमी होने पर प्रतिरोध की शक्ति कम हो जाती है। रंगों के साथ मानव के शरीर का कितना सम्बन्ध है, यह इससे स्पष्ट होता है। णमो अरहंताणं का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ किया जाये, तो श्वेत वर्ण हमारी आन्तरिक शक्तियों को जागृत करने में सक्षम होता है। वह समूचे ज्ञान का संवाहक है। श्वेत वर्ण स्वास्थ्य का प्रतीक है। हमारे शरीर में रक्त की जो कोशिकाएं हैं, वे मुख्य रूप से दो रंगों की है-श्वेत रक्त कणिकाएं (W.B.C.) और लाल रक्त कणिकाएं (R.B.C.) जब हमारे शरीर में रक्त कणिकाओं का सन्तुलन बिगड़ जाता है तो शरीर रुग्ण हो जाता है। "णमो सिद्धाणं" का जाप हमारे शरीर में लाल वर्ण को जागृत करता है। "णमोआइरियाणं" का पीला रंग हमारे मन को सक्रिय बनाता है। शरीर शास्त्रियों का मानना है कि यह थायराइड ग्लेण्ड आवेगों पर नियंत्रण करता है। "णमो उवज्झायाणं" का नीला रंग शान्तिदायक, एकाग्रता पैदा करने वाला, कषायों को शान्त करने वाला है। इस पद के जाप से आनंद केन्द्र सक्रिय होता है। "णमो लोए सव्व साहूणं" का काला रंग शरीर में प्रतिरोध शक्ति बढ़ाता है। कुल मिलाकर णमोकार मंत्र 45
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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