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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
जो गुणइ भत्ति सो, पावइ सासयं ठाणं । अर्थात् जो व्यक्ति इस महामंत्र की आठ करोड़, आठ लाख, आठ हजार, आठ सौ आठ बार जाप करता है वह शाश्वत सुख धाम मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। लगातार सवा लाख जाप करने से सब कष्ट दूर होकर दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। एक लाख जाप करने से आई हुई विपत्तियाँ नष्ट होकर अभीष्ट फल प्राप्त होता है। इस महामंत्र को सिद्ध करने की अनेकों विधियाँ प्राचीन ग्रन्थों में मिलती है। एक जगह लिखा है।
जो गुणई लक्खमेगं, पुण्णइ विहिइ जिगनमुक्कारं ।
सो तईअभवे सिज्झइ, अहवा सात?मे जम्मे ॥ __ अर्थात् जो मनुष्य पूर्ण विधि सहित नमस्कार मंत्र का एक लाख जाप कर लेता है, वह तीसरे या सातवें या आठवें भव में नियम से सिद्ध हो जाता है। अन्यत्र भी कहा है
नमस्कारसमो मंत्र, शत्रुञ्जयसमो गिरी।
वीतरागसमो देवो, न भूतो न भविष्यति। __नमस्कार जैसा मंत्र, शत्रुञ्जय जैसा पर्वत, वीतराग जैसे देव न भूतकाल में हुए हैं और न ही भविष्य काल में होंगे। मंत्र-विशारद कहते हैं कि इस मंत्र का नौ लाख जाप करने से नरक गति के बन्ध का निवारण होता है। अनेक प्रकार की सिद्धियाँ व संपत्तियाँ प्राप्त होती हैं। यदि प्रतिदिन एक माला का जाप करें तो २५ वर्ष में नौ लाख मंत्र जाप पूर्ण होता है। और यदि पाँच माला प्रतिदिन जाप करें तो पाँच वर्ष में नौ लाख जाप पूर्ण होता है।
मंत्र का सामर्थ्य:- मंत्र की रचना अक्षरों के समायोजन से होती है। और फिर कोई भी अक्षर निर्बीज नहीं होता- “निर्बीज अक्षरं नास्ति'। प्रत्येक अक्षर की सजीवता ही अनुकूल समायोजन पाकर शक्ति, शान्ति और समृद्धि को उत्पन्न करती है। आज विज्ञान ने नवीन तथ्यों का उद्घाटन किया है। उनमें "साउण्ड-एनर्जी"- ध्वनि शक्ति भी एक है। ध्वनि तरंगों से हीरे की कटाई आज सामान्य बात बन गई है। हीरे जैसे कठोर रत्न को ध्वनि-तरंगें काट सकती हैं, तब क्यों नहीं मंत्र-ध्वनि द्वारा कारक और मारक क्रियायें हो सकती हैं? जैसे ध्वनि के द्वारा आज रिमोट चलता है, मोबाईल चलता है, कम्प्यूटर चलता है, उसमें जो आवाज सेव कर दी जाती है उसी से वह ऑन-ऑफ होता है, ठीक उसी प्रकार प्राचीन आचार्य कहते हैं कि पंच नवकार मंत्र के चिन्तन मात्र से जल, अग्नि आदि स्थिर हो जाते हैं। शत्रु-महामारी, चोर तथा राज्य संबंधी घोर विघ्नों का नाश हो जाता है। शब्द के प्रयोग से व्याख्याता हजारों-लाखों श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर देता है। मंत्र में शब्दों के साथ-साथ साधक की भावनाओं का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। कुछ मंत्रों के तो अधिष्ठाता देवी-देवता होते हैं जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार कार्य करते हैं।
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