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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
१३. शब्दों के समूह की विशिष्ट छवि मानस पटल पर बनती है । उस छवि के अनुसार ही व्यक्ति के भाव बनते हैं; श्रद्धा बनती है और उसके परिणाम होते हैं। जैसे शिखर जी व गिरनार जी का नाम लेने पर भिन्न भिन्न छवि बनती है, जिस प्रकार लड़कालड़की, मानव-मानवी, देव-देवी, शब्दों में केवल 'ई' की मात्रा का ही अन्तर है, फिर भी भिन्न-भिन्न छवि बनती हैं। वही स्थिति 'अरिहंत' और अरहंत की है । 'अरहंत' शब्द से ८ प्रातिहार्यों से युक्त, अनंत चतुष्टय से संपन्न, छियालीस गुणों वाले, इन्द्र व देवताओं से पूजित देवाधिदेव छवि वाले, समस्त लोक के आदरणीय वन्दनीय पूजनीय जिनेन्द्र देव ।
अभी आपको बचपन में मिले संस्कारों के कारण 'अरिहंत' शब्द का अभ्यास बना हुआ है, तथा उस रूप कर्म शत्रुओं का नाश करने वाले परमात्मा की छवि बनी हुई है, लेकिन अब आपको पुराने जमाने के संस्कारों को तोड़कर उस अरहंत परमात्मा की छवि बनाना है जो अनंत चतुष्टय युक्त, अष्टप्रातिहार्य सहित, चौतीस अतिशयों से सम्पन्न हैं। उस देवाधिदेव प्रभु की छवि अपने दिल-दिमाग में बनाने में थोड़ा समय जरूर लगेगा लेकिन उचित और हितकारी अवश्य रहेगा।
णमोकार का अर्थ है नमस्कार। और नमस्कार तभी होगा जब हमें अपने परमात्मा के प्रति विनय 'लघुता' होगी, कृतज्ञता - जिज्ञासा होगी, फिर आपके हृदय में 'हन्त' अर्थात् नष्ट के भाव कैसे आ सकेंगे । अरे !जब नमस्कार करते ही अहंकार, मद, गर्व, उच्चता, अभिमान, पलायन हो जाता है फिर हन्त (नष्ट) कैसे करोगे ? अरि (शत्रु) कैसे मानोगे ? क्योंकि अहंकार के छोड़े बिना णमोकार नहीं हो सकता । अहं के छोड़े बिना नमन् नहीं हो सकता। और नमन के बिना जीवन चमन नहीं हो सकता । तत्त्वानुशासन ग्रन्थ में आचार्य श्री ने णमोकार के नमस्कार में एक-एक अक्षर की महिमा के विषय में कहा है
णमोकार मंत्र के एक अक्षर का भी भक्ति पूर्वक नाम लेने से सात सागर के पाप कट जाते हैं, पाँच अक्षरों का पाठ करने से पचास सागर के पाप कट जाते हैं । पूर्ण मंत्र का उच्चारण करने से पाँच सौ सागर के पाप कट जाते हैं। इस मंत्र को ९८४२२ प्रकार से बोला जा सकता है और वैसे भी इस णमोकार महामंत्र से ८४ लाख मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। इस महामंत्र के प्रभाव से अनेकों आत्माओं का उद्धार हुआ है। कुमार पारसनाथ ने जलते हुए नाग-नागिन को सुनाया जिससे वह मरकर धरणेन्द्र - पद्मावती हुये । राजकुमार जीवंधर स्वामी ने मरते हुये कुत्ते को सुनाया, जिससे वह मरकर सुदर्शन नामक यक्षेन्द्र देव हुआ । मरते हुये बैल को राम ने सुनाया जिससे वह बैल मरकर सुग्रीव हुआ। उसी णमोकार महामंत्र के प्रभाव से अंजन चोर का उद्धार हुआ। इसके जाप के विषय में प्राचीन आचार्यों ने कहा है
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अट्ठसंय अट्ठसहस्स, अट्ठलक्ख अट्ठ कोडिओ |
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