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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मनि प्रार्थना सागर संबंध में बताया गया है हलो बीजानि चोक्तानि स्वराः शक्तय ईरिताः ॥३७७॥ अर्थात्- ककार से लेकर हकार पर्यंत व्यंजन बीजसंज्ञक हैं और अकारादि स्वर शक्ति रूप हैं। मन्त्र बीजों की निष्पत्ति बीज और शक्ति के संयोग से होती है। सारस्वत बीज, माया बीज, शुभनेश्वरी बीज, पृथ्वीबीज, अग्निबीज, प्रणवबीज, मारुतबीज, जलबीज, आकाशबीज, आदि की उत्पत्ति उक्त हल और अचों के संयोग से हुई है। ___ मंत्र शास्त्र का संक्षेप में विश्लेषण और विवेचन का निष्कर्ष यह है कि मंत्रों के बीजाक्षर, सन्निविष्ट ध्वनियों के रूप विधान में उपयोगी लिंग और तत्त्वों का विधान एवं मंत्र के अन्तिम भाग में प्रयुक्त होने वाला पल्लव अंतिम ध्वनि समूह का मूल स्रोत णमोकार महामंत्र है। जिस प्रकार समुद्र का जल नवीन घड़े में भर देने पर नवीन प्रतीत होने लगता है, उसी प्रकार णमोकार मन्त्र रूपी समुद्र में से कुछ ध्वनियों को निकालकर मंत्रो का सृजन हुआ है। कातंत्र रूपमाला का सूत्र ‘सिद्धो वर्णसमाम्नायः' बतलाता है कि वर्गों का समूह अनादि है। णमोकार मंत्र में कण्ठ, तालु, मूर्धन्य, अन्तस्थ, ऊष्म, उपध्यानीय, वरर्थ आदि सभी ध्वनियों के बीज विद्यमान हैं और बीजाक्षर मंत्रों के प्राण हैं। ये बीजाक्षर ही स्वयं इस बात को प्रकट करते हैं कि इनकी उत्पत्ति कहां से हुई है। बीजाकोश में बताया गया है कि "ॐ" बीज समस्त णमोकार मंत्र से, "ह्रीं" की उत्पत्ति णमोकार मंत्र के प्रथम पद से, "श्रीं" की उत्पत्ति द्वितीय और तृतीय पदों से 'क्लीं' की उत्पत्ति प्रथम पद में प्रतिपादित तीर्थंकरों की यक्षिणियों से, अत्यन्त शक्तिशाली सकल मंत्रों में व्याप्त ‘हूँ' की उत्पत्ति णमोकार मंत्र के प्रथम पद से, 'द्रां द्रीं' की उत्पत्ति उक्त मंत्र के चतुर्थ और पंचम पद से हुई है 'ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः' बीजाक्षर प्रथम पद से और 'क्षां क्षीं झू झें मैं क्षौं क्षः' बीजाक्षरों की उत्पत्ति प्रथम, द्वितीय और पंचम पद से निष्पन्न हुई है। इसके अलावा णमोकार मन्त्र कल्प, भक्तामर यंत्र मंत्र, कल्याणमंदिर यंत्र मंत्र, यंत्र मंत्र संग्रह, पद्मावती मंत्रकल्प, ज्वालामालिनी कल्प, आदि मंत्र ग्रथों के अवलोकन से पता लगता है कि समस्त मंत्रों के रूप बीज पल्लव की उत्पत्ति इसी णमोकार महामंत्र से हुई है। और इतना ही नहीं चौरासी लाख मंत्रों की उत्पत्ति इसी महामन्त्र से हुई मानी जाती है। आचार्य शुभचन्द्र महाराज ने ज्ञानार्णव महा ग्रन्थ में लिखा है कि षोडशाक्षर, षडाक्षर, चतुराक्षर, द्वयाक्षर, एकाक्षर, पंचाक्षर, त्रयोदशाक्षर, सप्ताक्षर, अक्षरपंक्ति इत्यादि नाना प्रकार के मन्त्रों की उत्पत्ति इसी महामंत्र से हुई है। इसके अतिरिक्त सकलीकरण क्रिया मंत्र, ऋषिमन्त्र, पीठिकामन्त्र, प्रोक्षणमन्त्र, प्रतिष्ठामन्त्र, शांतिमंत्र, इष्टसिद्धि-अरिष्ट निवारक मंत्र, विभिन्न मांगलिक कार्यो के अवसर पर उपयोग में आने वाले मंत्र, विवाह मंत्र, यज्ञोपवीत धारण मंत्र, मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा मंत्र, सूरि मंत्र, वेदी प्रतिष्ठा मंत्र, दीक्षा मंत्र, मातृका मंत्र, अनेक 29
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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