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मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
अर्थात् शान्तप्रिय स्थान, जैसे-मन्दिर-चैत्यालय, नदी- सरोवर का किनारा, तीर्थक्षेत्र, अतिशय क्षेत्र, सिद्धक्षेत्र आदि मंत्र साधना के लिए उपयुक्त स्थान हैं।
३. समयशुद्धि :- प्रातः, मध्याह्न और सन्ध्या समय मन्त्र-आराधना के लिए उपयुक्त समय है। वैसे कालशुद्धि के अन्तर्गत मन्त्र जाप का प्रारंभिक समय भी लिया जाता है। अतः शुभ-दिन, शुभ-तिथि, शुभ-नक्षत्र, शुभ-लग्न, शुभ-योग और शुभअमृत-लाभ चौघड़िया में जाप प्रारंभ करना चाहिए
४. आहार शुद्धि :- मंत्र-साधक का आहार सात्विक व परिमित होना चाहिए। क्योंकि राजसिक व तामसिक आहार से मंत्र साधना में मन नहीं लगता तथा प्रमाद आता है। अतः साधक को शुद्ध, शाकाहारी, सात्विक, भूख से कम भोजन लेना चाहिए।
५. संबंध शुद्धि :- साधक को सच्चे आस्तिक लोगों के साथ रहना चाहिए जिससे उसका मंत्र एवं मंत्र प्रदाता पर विश्वास बना रहे; क्योंकि मंत्र या मंत्र प्रदाता पर विश्वास न होने से मंत्र सिद्ध नहीं होता।
६. आसन शुद्धि :- काष्ठ, शिला, भूमि, चटाई या शीतलपट्टी पर पूर्वदिशा या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पद्मासन, अर्धपद्मासन, खड़गासन, या सुखासन पर स्थिर होकर क्षेत्र तथा काल का प्रमाण करके मौन पूर्वक जाप करना चाहिए।
७. विनयशुद्धि :- जिस आसन पर बैठकर जाप करना हो, उस आसन को सावधानी पूर्वक ईर्यापथ शुद्धि के साथ साफ करना चाहिए तथा जाप करने के लिए नम्रता पूर्वक भीतर का अनुराग भी रहना चाहिए। क्योंकि जाप करने के लिए जब तक भीतर का उत्साह नहीं होगा, तब तक सच्चे मन से जाप नहीं किया जा सकता।
८. मन शुद्धि :- विचारों की गन्दगी का त्याग कर मन को एकाग्र करना, चंचल मन इधर-उधर न भटकने पाये इसकी चेष्ठा करना, मन को पूर्णतया पवित्र बनाने का प्रयास करना ही इस शुद्धि में अभिप्रेत है।
९. वचन शुद्धि :- धीरे-धीरे साम्यभाव-पूर्वक मन्त्र का शुद्ध जाप करना, अर्थात् उच्चारण करने में अशुद्धि न होने पाये इसका विवेक रखना वचन शुद्धि है। मन ही मन भी जाप किया जा सकता है।
१०. काय शुद्धि :-शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर यत्नाचारपूर्वक शरीर को शुद्ध करके हलन-चलन रहित होकर जाप करना कायशुद्धि है।
११. मन्त्र शुद्धि :- जिस मंत्र का जाप करना हो उसके बीजाक्षरों का मिलान करके देख लें कि गलत तो नही हैं, फिर शुद्ध उच्चारण पूर्वक त्रियोग से जापकरना चाहिए। १२. विधि-विधान शुद्धि- पूर्व निर्धारित क्रिया पूर्वक जाप करना विधि-विधान
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