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-क्षपक, क्षीणमोही जीवों की प्रवेश के समय संख्या 1 से 108 तक हो सकती है। क्षपणकाल में न्यूनतम 200 व अधिकतम 900 होती है। सयोग केवली न्यूनतम 2 करोड़ व अधिकतम नौ करोड़ होती है। -अन्तर्मुहूर्त प्रमाण क्षपक श्रेणी काल में एक समय में 108, दूसरे समय में फिर 108 जीव होते हैं। -प्रथम नरक में असंख्यात श्रेणी(सात रज्जु लम्बी आकाश प्रदेश पंक्ति) परिमाण नारकी जीव हैं शेष 6 नरकों में प्रत्येक श्रेणी के असंख्यातवें भाग जितने मिथ्यादृष्टि जीव होते हैं। -सामान्यतः एकेन्द्रिय से चार-इन्द्रिय त्रस जीव अनन्त मिथ्यादृष्टि हैं जबकि पंचेन्द्रिय त्रस जीवों की संख्या अपेक्षाकृत कम है किन्तु देवों की संख्या से असंख्यात गुणा अधिक हैं। 3. क्षेत्र द्वारइसका सम्बन्ध आकाश द्रव्य से है जिसमें जीव पुद्गल आदि 6 द्रव्यों क निवास होता है। इसमेंरहने वाले जीवों का अवगाहन प्रमाण की चर्चा इस द्वार में की गई है। गुणस्थान परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्थिति इस प्रकार है- मिथ्यादृष्टि सर्वलोक में है शेष गुणस्थानवी जीव लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं। केवली असंख्यातवें भाग में तथा समुद्घात की अपेक्षा सर्व लोक(लोकव्यापी) में होते हैं। 4. स्पर्शन द्वारइसमें आकाश अर्थात् लोकाकाश-अलोकाकाश के स्वरूप को समझाया गया है। इसका उर्ध्व लोक को मृदंग(ढोल), मध्य लोक झल्लरी(थाली जैसा वादय) तथा अधोलोक वेत्रासन(गाय की गर्दन) के समान है। अधोलोक में रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियां स्पर्शनीय हैं। मध्य लोक भी दवीप-सागरों से स्पर्शनीय है। उर्ध्व लोक(ब्रह्मदेवलोक तक तीन रज्ज प्रमाण) मध्य लोक की चौड़ाई से 14 गुणा लम्बा है। 14 गुणस्थानवी जीवों में से मिथ्यादृष्टि सर्व लोक का, सास्वादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टि और देशविरत सम्यग्दृष्टि लोक के 14 भाग(रज्जू प्रमाण) क्षेत्र में क्रमशः 12, 8,8 तथा 6 भाग परिमाम क्षेत्र को स्पर्श करते हैं। शेष प्रमत्तसंयत आदि गुणस्थानों के जीव असंख्यातवें भाग का ही स्पर्श करते हैं जबकि केवली सर्व लोक का स्पर्श करते हैं। 5.काल द्वारकाल के तीन प्रकार किए गए हैं- (अ) भवायुकाल- प्राणी की एक भव की आयु बताने वाला (आ) कायस्थितिकाल- जीव पुनः-पुनः उसी काया में जन्म लेता है वह कायस्थितिकाल है। (इ) गुणविभागकाल- प्रत्येक गुणस्थान में जीव जितने समय रहता है वह गुणविभागकाल कहलाता है।मिथ्यात्वगुणस्थान का काल सादिसन्त है। सास्वादन गुणस्थान का जघन्यकाल एक समय तथा उत्कृष्टकाल 6 अवलिका है। मिश्र गुणस्थान का उत्कृष्ट व जघन्यकाल अन्तर्मुहुर्त प्रमाण है। सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का काल 33 सागरोपम है देशविरति व सयोग केवली का कुछ काल कम पूर्व कोटि वर्ष का है।प्रमत्तसंयत गुणस्थान का जघन्यकाल एक समय तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त प्रमाण है। सम्पूर्ण क्षपक श्रेणी अन्तर्मुहुर्त प्रमाण है।
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