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________________ होता है। तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र (दिवस) होता है । पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष होता है। एक पक्ष का एक मास होता है। दो मास की एक ऋतु होती है। दो अयन का एक वर्ष होता है। चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग होता है। चौरासी लाख वर्षों को चौरासी लाख वर्षों से गुणा करने पर एक पूर्व प्राप्त होता है। पूर्व के आगे नयूतांग, नूयत नलिनांग, नलिन आदि की चर्चा के साथ अंत में शीर्ष प्रहेलिका का उल्लेख है। आगे का काल संख्या बताना संभव न होने से पल्योपम, सागरोपम आदि उपमानों से स्पष्ट किया जाता है। इसके प्रभेदों में संख्यात, असंख्यात और अनन्त को शामिल किया जाता है। भाव परिमाण में प्रत्यक्ष व परोक्ष को समाहित करते हैं। क्षेत्र द्वार में आकाश को इंगित किया है। स्पर्शन द्वार के अन्तर्गत लोक के स्वरूप व आकाश एवं स्वरूप का वर्णन है। काल द्वार में 3 कालों की चर्चा है- 1. भावायु काल- चारों गतियों के जीवोंकी अधिकतम व न्यूनतम आयु की चर्चा है (जीव विशेष की अपेक्षा से तथा इस गति के सर्व जीवों की अपेक्षा से)। इसी कर्म से उर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यक्लोक का विवेचन किया गया है। तिर्यक्लोक के अन्तर्गत जम्बूद्वीप और मेरुपर्वत का स्वरूप स्पष्ट किया गया है और उसके पश्चात् द्विगुण द्विगुणविस्तर वाले लवण समुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि समुद्र, पुष्करद्वीप और उसके मध्यवर्ती मानुषोत्तर पर्वत की चर्चा है। इसी चर्चा के अन्तगर्त यह भी बताया गया है कि मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत तक ही निवास करते हैं। यद्यपि इसके आगे भी द्विगुणितद्विगुणित विस्तार वाले असंख्य द्वीप समुद्र हैं। सबके अंत में स्वम्भूरमण समुद्र है। आठ अनुयोग द्वार 1. सत्प्ररूपणा द्वार इसमें जीव के स्वरूप, भेद व अधिकारों का वर्णन किया है। 2. परिमाण द्वार- दव्वे खेत्ते काले भावे य चउव्विहं पमाणं तु। दव्वपएसविभागं पएसमेगाइमणंतं।।87 || जीवसमास ।। द्रव्य क्षेत्र काल भाव ये 4 प्रकार के परिमाण कहे गये हैं। परिमाण शब्द का एक अर्थ है- प्रमाण अर्थात् जिससे पदार्थ की मात्रा या माप को जाना जाय। इन मापों के 5 भेद हैं , (अ) मान प्रमाप- धान्य व तरल पदार्थ को मापने का पात्र धान्य को अशति या मुट्ठी, प्रसति (पसनियां, अञ्जलि), सेतिका, कुदव, प्रस्थ आढक, द्रोण, जघन्य कुम्भ, मध्यम कुम्भ, उत्कृष्ट कुम्भ तथा बाह आदि मगध देश की प्रचलित प्राचीन मापक इकाइयां थीं। 2 अशति = 1 प्रसति, 2 प्रसति 1 सेतिका, 4 सेतिका = 1 प्रस्थ, 4 प्रस्थ = = = 1 कुदव, 4 कुदव 1 आढ़क, 4 आढ़क = 1 द्रोण, 60 आढ़क = 1 जघन्य कुम्भ, 80 आढ़क = 1 मध्यम कुम्भ, 100 आढ़क = 1 उत्कृष्ट कुम्भ तथा 800 आढ़क = 1 बाह होता है। तरल पदार्थों का मापन धान्य के माप से चौथाई भाग अधिक मापा जाने का विधान था। उन्मान प्रमाप-जिन वस्तुओं के साधन तराजू बटखरे होते हैं उन्हें उन्मान प्राप जाता है। ये माप हैं- अर्धकर्ष, कर्ष, अर्धपल, पल, अर्धतुला, तुला, अर्धभार व भार अर्धकर्ष सबसे कम भार का माप है। संभवतः सेर छटाँक व मन का आधार ये मापक रहे होंगे। (आ) 79
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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