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________________ आत्मा या निरालंबन ध्यान को छोड़कर स्थान, वर्ण, अर्थ आलम्बन के योग का आश्रय करके जो ध्यान किया जाता है वह व्यवहारनय आश्रित है। इसके उपभेद इस प्रकार किए गये हैं-स्थान योग- अर्थात् योग्य मुद्रा स्वीकार्य। ध्यान की एकाग्रता के लिए योग्य आसन अनिवार्य है(वीरासन, पद्मासन व पर्यंकासन)। छद्मस्थ दशा में प्रत्येक शुभ अनुष्ठान ध्यान स्वरूप है। इस अनुष्ठान में योग्य मुद्रा का पालन स्थान योग है। -वर्ण योग- सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना भी एक ध्यान है। -अर्थ योग- सूत्र उच्चारण के समय उसके अर्थ में उपयोग रखना अर्थ उपयोग है। -आलंबन योग- जिन बिम्ब आदि शुभ पदार्थों में मन को स्थिर रखना आलम्बन योग है। (आ) निश्चयनय आश्रितआत्मा के द्वारा आत्मा का ध्यान वास्तविक ध्यान है। आत्मा ही ज्ञान दर्शन और चारित्र स्वरूप है ऐसा श्रद्धायुक्त ध्यान सम्यग्दर्शन ज्ञान व चारित्र की प्राप्ति में सहायक है तथा कर्म मुक्ति का बंधन है। इस प्रकार निश्चयनय से ही आत्मा का कर्ता है, ध्यान का कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण भी। आत्म ध्यान से ही कर्मों की निर्जरा संभव है बाह्य आचार पालन से नहीं. ऐसी दृढ़ मान्यता पर चलकर आत्मा परमात्मा स्वरूप बनती है। पं. दौलतरामजी छहढाला में कहते हैं कि जहाँ ध्यान ध्याता ध्येय को न विकल्प बच भेदन जहाँ, चिद भाव कर्म चिदेस कर्ता चेतना क्रिया तहाँ।। ज्ञानसार में पू. उपाध्यायजी ने कहा है ध्याता ध्येयं तथा ध्यानं, त्रयं यस्कैकतां गतम्। मुनेरनन्य- चित्तस्य, तस्य दुःखं न विद्यते।। ध्यान में गणस्थान-एक ध्यान में अंतिम आठ गुणस्थान होते हैं -दो ध्यान में कुल चार गुणस्थान होते हैं प्रथम के तीन और छठा। - तीन ध्यान में कुल दो गुणस्थान होते हैं -चौथ- पाँचवा - आर्तध्यान में प्रथम 6गुणस्थानक होते हैं तथा रौद्र ध्यान में प्रथम के पाँच। - शुक्लध्यान अपूर्वकरण गुणस्थान से प्रारम्भ होता है। पृथकत्व वितर्क सविचार'- आद्य शुक्लध्यान है। पृथकत्व =अनेकता वितर्क-श्रुत की चिंता, विचार= एक चिंतन से दूसरे चिंतन पर गमन करना। क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ दसवें गणस्थान को पार कर 12वें गुणस्थान को प्राप्त करने वाली वीतराग, महायती और क्षीणमोही बनी आत्मा पूर्व की तरह भाव युक्त होकर दूसरे शुक्लध्यान का आश्रय लेती है। 63
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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