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7- सातवें गुणस्थान ( उपशम श्रेणी के सम्मुक) से नीचे की ओर दो मार्ग हैं। (सातवें से छठे में और मरण की अपेक्षा चौथे में) और ऊपर की ओर गमन का एक ही मार्ग है सातवें से आठवें में)
8- आठवें गुणस्थान (उपशम श्रेणी वाले) से नीचे की ओर दो मार्ग (आठवें से सातवें में तथा मरण की अपेक्षा चौथे में) और ऊपर की ओर गमन करने का एक ही मार्ग है ( सातवें से आठवें में)
9- नवमे गुणस्थान (उपशम श्रेणी वाले) से नीचे की ओर गमन करने के दो मार्ग ( नवमे से आठवें तथा मरण की अपेक्षा चौथे में) तथा ऊपर की ओर दसवें गुणस्थान में एक ही मार्ग है।
10- दसवें गुणस्थान ( उपशम श्रेणी वाले) से नीचे की ओर गमन करने के दो मार्ग (दसवें से नवमे में तथा मरण की अपेक्षा चौथे में) और ऊपर की ओर दो मार्ग (दसवें से ग्यारहवे में) 11- ग्यारहवे गुणस्थान से नीचे गमन के दो मार्ग (दसवे में तथा मरण की अपेक्षा चौथे में) तथा ऊपर की ओर कोई मार्ग नहीं है।
से ऊपर गमन का मार्ग क्रम से आठवें, दसवे, नीचे का मार्ग नहीं हैं।
12- सातवें गुणस्थान ( क्षपक श्रेणी वाले) बारहवें, तेरहवे, चौदहवे गुणस्थान (सिद्ध) है। जीव का उद्देश्य मोक्ष प्रप्ति है वह क्रमशः कर्मों की निर्जरा करता हुआ उच्च से उच्चतर गति पाता हुआ अन्त में उच्चतम मोक्ष स्थिति को प्राप्त होता है जहाँ से फिर उसे भटकना नहीं पड़ता। सम्यक्त्व प्राप्त होने के पश्चात जीव नीच गति प्रथम नरक के सिवाय बाकी के छः नरकों, हीनाधिक देव ( भवनवासी, व्यन्तर एवं ज्योतिषी) नारी, स्थावर से लेकर चतुरिन्द्रिय तक पशु पर्याय तक धारण नहीं करनी पड़ती। गुणस्थानों में श्रेणी चढ़ने की पात्रता सम्बन्धी विधान
नपुंसक,
1. यदि चरमशरीरी आत्मा उपशम से 11वें गुणस्थान में चढ़ती है तो पतनोन्मुख होने पर क्रमशः 10 9 8 और फिर 7वें गुणस्थान पर आकर रुकती है और क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर क्षपक श्रेणी चढ़ सकती है।
2. यदि आत्मा चरम शरीरी नहीं है तो नियत क्रम से नीचे आते-आते यदि छठे गुणस्थान में रुक जाय तो पुनः दूसरी बार भी उसी भव में उपशम श्रेणी चढ़ सकती है । ( एक भव में दो बार उपशम श्रेणी चढ़ना कर्मग्रंथिक मत है, सैद्धान्तिक नही)
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3. यदि पतनोन्मुख आत्मा छठे गुणस्थान में नहीं रुके तो वह पाँचवे और चौथे गुणस्थान आ सकती है और यदि अनन्तानुबंधी कषाय उदय में आ जाय तो वह स्व को प्राप्त कर पुनः मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकती है।
4. उपशम श्रेणी संसार चक्र में उत्कृष्टता से 4 बार तथा एक जीव को एक भव में दो बार प्राप्त हो सकती है।
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