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________________ 2.समुद्रघात की क्रिया के द्वारा वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मों की स्थिति को आयुष्य की स्थिति के अनुरुप कर लेने के बाद क्षपक आत्मा तीन योग वाली बन जाती है। इसके त्याग हेतु आत्मा 13वें गुणस्थान के अंत में योग निरोध की क्रिया हेतु (सूक्ष्म क्रिया अनिवृत्ति ध्यान) तृतीय शुक्लध्यान का ध्यान करती हैं।) गुणस्थान में मरणगुणस्थान गति में उत्पन्न प्रथम चारों गतियों में( देव गति में नवग्रेवेयक तक) दवितीय तीन गतियों में, नियम से नरक नहीं जाता। तृतीय इसमें मरण नहीं होता। चतुर्थ पूर्व में मिथ्यात्व परिणामों से जिस आयु का बंध किया हो बाद में सम्यक्त्व प्राप्त करने पर भी उसी में जाता है। नरक से नीचे नहीं जाता। त्रियंच गति में भोग भूमि का त्रियक बनता है, कर्म भूमि का नही, देव गति में स्वर्ग ही जाता है यदि किसी आयु का बंध नहीं हुआ है तो देव गति में ही जाता है। पाँचवें से ग्यारहवें इन गुणस्थानों में जीव मरकर देव गति में ही उत्पन्न होता है। अन्य तक गति में नहीं और देव गति में भी कल्पवासी देव बनता है। अयोगकेवली गुणस्थान इस गुणस्थान में जीव सिद्ध गति मरण कर (सिद्धशिला) को पा जाता है। गणस्थान में उतरने व चढने के मार्ग1-पहले गुणस्थान से ऊपर के गमन के चार मार्ग हैं। जीव पहले से तीसरे, चौथे, पाँचवें तथा सातवें गुणस्थान में जा सकता है। थान से नीचे की ओर गमन का एक ही मार्ग है ( दूसरे से पहले में आना) दूसरे से ऊपर की ओर गमन का कोई मार्ग है। 3- तीसरे गणस्थान में नीचे व ऊपर की ओर गमन का एक ही मार्ग है। 4- चौथे गुणस्थान से नीचे के गमन के तीन मार्ग हैं ( चौथे से तीसरे, दूसरे वपहले गुणस्थान में) और ऊपर गमन के दो मार्ग ( चौथे से पाँचवें तथा सातवें गुणस्थान) हैं। 5- पाँचवें से नीचे के तीन मार्ग हैं( पाँचवें से चौथे, तीसरे, दूसरे एवं पहले गुणस्थान में) है और ऊपर गमन का केवल एक मार्ग है। ( पाँचवें से सातवें में) 6- छठे से नीचे की ओर पाँच मार्ग और ऊपर की ओर छठे से सातवें में एक ही मार्ग है। 56
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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