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________________ आभार दर्शन भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान गोविन्द से पहले आता है क्योंकि लक्ष्य सिद्धि की राह में एकमात्र गुरु ही सच्चा पथ-प्रदर्शक व सहायक सिद्ध होता है। इस नाते मैं सर्वप्रथम अपने शोध-निर्देशक डॉ. दीनानाथ शर्माजी का सविनय श्रद्धापूर्वक आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने न सिर्फ मुझे इस शोध कार्य का अवसर प्रदान करके उपकृत किया है अपितु इस शोध साधना में आपने अपना अमूल्य समय व यथोचित मार्गदर्शन प्रदान कर शोध कार्य को समग्रता प्रदान की है। मैं जीवनभर इनकी ऋणी रहूँगी। मैं श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए उन सभी धर्माचार्यों के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहती हूँ जिन्होंने इस विषय से जुड़ी अवधारणाओं के संदर्भ में प्रत्यक्ष विचार-विमर्श के द्वारा विभिन्न रहस्यों को उजागर करके मेरे शोध कार्य को सही दिशा में बढाने में मदद की मैं मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्राकृत भाषा एवं जैन दर्शन विभाग के सह-प्राध्यापक डॉ. जिनेन्द्र जैन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर हर्ष का अनुभव कर रही हूँ जिन्होंने मेरी विद्यावाचस्पति की मौखिक परीक्षा के समय इस शोध कार्य को प्रकाशित करने की अनुशंसा की और इसके पश्चात भी समय समय पर सहज रूप से अपना बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया। मैं अपने जन्मदाता पूजनीय माता-पिता श्रीमती रैन मंजूषा देवी- श्री विजय स्वरूप जैन तथा सभी बुजुर्गों का उनके स्नेहाशीष के लिए अंतःकरण से आभार व्यक्त करना नैतिक कर्तव्य समझती हूँ जिन्हें मेरे कुछ नया करने पर अपार खुशी मिलती है उनका यही हर्षोल्लास मेरे लिए आशीर्वादरूप साबित हुआ है। मैं अपने सदा-सहयोगीवृत्ति रखने वाले पति श्री अमिताभ जैन व बेटी अरिना जैन की तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने सदैव मेरी परिस्थितियों व जरूरतों के अनुकूल रहने में कभी कृपणता नहीं बताई। आपकी इस सामन्जस्यपूर्णवृत्तिजनित सहजता व आत्मीयता ने मुझे कार्य करने की जो ऊर्जा व प्रेरणा प्रदान की है उसे मेरे लिए शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं है। सभी स्नेहिल भाई-भाभी डॉ. लोकेश - मीनू, सोनेश - रश्मि, भतीजे-भतीजी इशिका, ईशान व अंशिका एवं अंजिका का भी आभार व्यक्त करना चाहूँगी जिनके प्रत्यक्ष व परोक्ष सहकार से मैं इस शोध कार्य को पूर्ण कर सकी।
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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