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________________ (ब) बौद्ध दर्शन और गुणस्थान अवधारणा “मुक्ति के लिए दूसरा आश्रय मत ढूंढो । बिना प्रमाद के किसी की कृपा पर निर्भर रहे बिना मुक्ति हेतु प्रयत्नशील रहो, पवित्र से पवित्र जीवन बिताओ तथा नियमित रुप से ध्यान व समाधि करो" - बुद्ध उपदेश भूमिका जैन दर्शन में वर्णित गुणस्थान की इस विकास यात्रा में चौदह चरण हैं जिसमें आरोहण, पतन, विकास एंव कर्म रहित होने की विभिन्न पद्धतियों को लेकर नियत व्यवस्थाओं का निर्देश है। गुणस्थान जीव की आध्यात्मिक विकास यात्रा के सोपानों की स्थिति का एक विश्लेषण है जिसकी मान्यता कि जैसे-जैसे जीव ऊपर के सोपानों में आरोहण हेतु विशुद्धतर या विशुद्धतम नैतिक-चारित्रिक विशुद्धतायुक्त पुरुषार्थ करता है वैसे-वैसे वह जीवन के अंतिम ध्येय निर्वाण या मोक्ष के निकट पहुँचता है और इस यात्रा के उच्चतर मुकामों पर उसे अलौकिक आध्यात्मिकता की सुखद अनुभूति होती है। यहाँ निर्वाण या मुक्ति की कल्पना जीव की समस्त कर्मों से मुक्ति, संकल्प-विकल्प रहित उसके निज स्वरूप में लौट आने से की गई है। जो गुण सहित है वही गुणी है। साधना की विभिन्न उच्चतर अवस्थाओं में पहुँचने हेतु किन किन गुणों का होना जरूरी है इस व्यवस्था अथवा विधान के संकलित स्वरूप को गुणस्थान के नाम से जाना जाता है। गुणस्थान का सीधा सम्बन्ध यूं तो जैन दर्शन से माना जाता है किन्तु भारत के प्रायः सभी प्रमुख दर्शनों में आध्यात्मिक विकास की बात अपने अपने तरीके से की गई है। बौद्ध धर्म का विकास जैन आध्यात्मिक परम्परा के समानान्तर रहा है। इसमें कितनी समानता देखने को मिलती है और कितनी विविधता - यह जानना भी अभ्यास की दृष्टि से तर्कसंगत लगता है। ताकि मानवोपयोगी गुणस्थान सिद्धान्त की सर्वव्यापक उपयोगिता को यथोचित स्थान प्राप्त हो सके। इससे गुणस्थान की अवधारणा की सार्वभौमिक स्वीकार्यता की वैज्ञानिक आधार पर पुष्टि की जा सकती है। बौद्ध दर्शन एवं परम्परा में गुणस्थानक विकास की स्थितियों के समकक्ष ऐसी कैनसी स्थितियां व विधान उपलब्ध हैं, उनका विश्लेषण निम्नवत् रूप मे किया जा सकता है बौद्ध दर्शन व परम्परा बौद्ध दर्शनम् - बुद्धि तत्त्व को प्रधान मानकर तत्त्व विवेचन करने वाला दर्शन ही बौद्ध दर्शन कहा गया है। बौद्ध दर्शन के 10 शील अर्थात् आचरण के 10 नियम इस प्रकार हैं- सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह 5व्रत तथा नृत्यगान - आमोद प्रमोद का त्याग, सुगन्धित 143
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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