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________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में 6. आलयांग 7. दीपांग 8. भाजनांग 9. मालांग और 10. तेजांग । इनके नाम किंचित् शब्द भेद से आदिपुराण8 में निम्नानुसार मिलते हैं - 1. मद्यांग 2. तूर्यांग 3. विभूषांग 4. स्रगंग 5. ज्योतिरंग 6. दीपांग 7. गृहांग 8. भोजनांग 9 पात्रांग और 10. वस्त्रांग। । ये सभी वृक्ष अपने-अपने नाम के अनुसार ही फल प्रदान करने वाले हैं। तिलोयपण्णत्ती लोकविभाग आदि ग्रन्थों में इनका स्वरूप इसप्रकार बताया गया है - - 1. पानांग - इस जाति के कल्पवृक्ष भोगभूमिया जीवों को मधुर, सुस्वाद, छह रसों से युक्त, प्रशस्त, अतिशीतल तथा तुष्टि और पुष्टिकारक बत्तीस प्रकार के पेय दिया करते हैं। ___2. तूर्यांग - इस जाति के कल्पवृक्ष उत्तम वीणा, पटु पटह, मृदंग, झालर, शंख, दुन्दुभि, भम्भा, भेरी और काहल इत्यादि भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजे देते हैं। ___3. भूषणांग/रत्नांग - इस जाति के कल्पवृक्ष पुरुषों के 16 प्रकार के और स्त्रियों के 14 प्रकार के कंकण, कटिसूत्र, हार, केयूर, मंजीर, कटक, कुण्डल, किरीट और मुकुट इत्यादि विविध उत्तम आभूषण प्रदान करते हैं। 4. वस्त्रांग - इस जाति के कल्पवृक्ष नित्य चीनपट (सूती 87. तिलोयपण्णत्ती, 4/346 88. आदिपुराण, 3/39-40 89. तिलोयपण्णत्ती, 4/347-357 90. लोकविभाग, 5/14-23
SR No.009364
Book TitleKaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanjiv Godha
PublisherA B D Jain Vidvat Parishad Trust
Publication Year2013
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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