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दिन संयम आरोहण की प्रतिज्ञा हेतु तय हुआ | कई महान संत संतियों के सुसानिध्य में मालव केशरी पूज्य श्री सौभाग्यमलजी म.सा. ने रिखबचन्दजी की पंचम संतान को संयम रत्न प्रदान कर कविवर्य पूज्यपाद श्री सूर्यमनिजी म.सा. के पंचम शिष्य के रूप में पंचम पद प्रदान किया । मानव से महामानव बनने वाले इस संयमी साधक के लिए मानवों ने ही नहीं देवों ने भी मंगल कामनाओं की बरखा की और आपका प्रसन्न मन गाने लगा - आज मैं लक्ष्य पाया जिंदगी का ध्रुव सितारा ..........
11 हरिसो गरू आणाए - जगावेड़ मणेबलं !
अच्छा गुरूकुल मिलता है - पुण्य के आधार से और फलता हे योग्यता के आधार से । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिसकी कुंडली में गुरू-ग्रह केन्द्र में हो उसे अन्य ग्रहों द्वारा होने वाले दूषण व्यथित नहीं करते उसी प्रकार जिसके ह्रदय के केन्द्र स्थान में गुरू हो उसका जीवन भी निर्बाध रूप से उन्नति की ओर अग्रसर रहता है । जिनवाणी पर अटूट श्रद्धा गुरू चरणों में समर्पण और प्रसन्नता पूर्वक जिनेश्वर भगवान की आज्ञा का पालन - इन तीन तत्वों ने मिलकर आप श्री में उत्तम शिष्यत्व का निर्माण किया | पूज्यपाद गुरूदेव श्री ने भी एक समर्थ शिष्य को पंचम पद की उँचाईयों पर पहुँचाने में यथाशक्य सहयोग दिया । विनम्रता के साथ आप भी सफलता की डगर पर बड़ते रहे | दोपहर में आड़ा आसन नहीं करना, प्रातः तीन-साढ़े तीन बजे उठकर साधना में प्रवृत्त होना, प्रतिदिन दो हजार गाथा प्रमाण स्वाध्याय करना, प्रतिवर्ष प्रायश्चित तप पचौला छ: आठ आदि करना, पाक्षिक उपवास, अन्न-पानी की मर्यादा, पद्मासन में प्रतिदिन एक घंटे तक 40 लोगस्स का ध्यान, बरसों से एकान्तर, एक समय अन्न ग्रहण, दीक्षा ली तब से प्रथम प्रहर में अन्न नहीं लेना - आदि कई नियमों का आपने अपने संयम काल में यथावत् पालन किया । सच में आपने ही तो लिखा हैं - हसियो गुरू - आणाए - जगावेइ मणेबलं (प्रसन्नता पूर्वक गुरू आज्ञा का पालन मनोबल को जाग्रत करता है) ।
12 संयम यात्रा के साथ -साथ साहित्य यात्रा !
दीक्षा के पूर्व तो अग्रज श्री रमेशजी के साहित्य- संग्रह से आप पढ़ते रहे | कविता बनाने की प्राथमिक शिक्षा भी उन्हीं से प्राप्त हुई । फिर बंबई - इंदौर के ग्रन्थालयों से भी अध्ययन किया | सन् 1947 से आप श्री का धार्मिक-लेखन प्रारंभ हुआ जो सम्यग्दर्शन पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित होता रहा | वैराग्य काल में आप श्री ने प्राकृत भाषा का भी अध्ययन किया । दीक्षा