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________________ 9 चैन की सांस - शिवरमणी की आस संसार के बंधनों में बांधकर माता - पिता अपने कर्तव्यों से मुक्त होना चाहते हैं । इसी में वे जीवन की इति श्री मान लेते हैं। ऐसा ही समझ रहे थे पिता श्री रिखबजी । आपकी धार्मिक भावनाओं से तो वे अनजान नहीं थे लेकिन वे नहीं चाहते थे कि हमारी आकांक्षाओं का शिखर साधु बनकर आध्यात्म की राह पर चले । वे जिस मार्ग को कंटकाकीर्ण मान रहे थे, उसी मार्ग को फूलों सा कोमल मानकर चलने के लिए आप संकल्प बद्ध थे । परन्तु बड़ों के समक्ष कुछ न कह पाने की झिझक अवरोधक बन गयी और परिजनों द्वारा आपकी सगाई तेरह वर्ष की उम्र में थांदला में कर दी गयी। रकम चढाने का मुहूर्त भी नियत हो गया और सगाई रस्म के पहले दिन घर में तो चक्की बनाने के लिए मुठड़िया तली जा रही थी और आप खिसक गए... ..... │ गाँव बाहर एक गढ्ढे में संसार के गढ्ढे से बाहर निकलने की सोच में देर रात तक बैठे रहे परिजन ढूंढते ढूंढते आए और घर ले गए। परिजनों ने आपके मन की थाह ली - आपका विरक्त मन तैयार नहीं हुआ, अतः सगाई छोड़ दी गयी । आपने चैन की सांस ली - शिवरमणी की आस में । 10 मोह हारा- पुरूषार्थ जीता ! - - सगाई के बंधनों से मुक्त होने के बाद विशेष रूप से आपने स्वयं को एकांत आत्मचिंतन और विशेष आराधना से स्वयं को जोड़ लिया। परिजनों की मोह ममता की लहरे आपके शांत मानसरोवर को विचलित नहीं कर पायी । अब तो एक ही धुन बस मुझे तो दीक्षा ही लेना हैं । बड़ो की मर्यादा का ख्याल था संकोच था ही अतः अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति पत्रों के माध्यम से होती थी। परिजनो का प्रयास चल रहा था कि आपका वैराग्य कैसे उतरे पर वैराग्य बाहरी चोला नहीं जो उतारा जाय । आपको चार माह के लिए बंबई में भी रखा गया, वहाँ से भी आपश्री ने लिखा मुझे बंबई क्या विलायत भी भेज दो तो भी में अपने निर्णय पर अटल रहूँगा । पुनः थांदला आए । मामाजी के समक्ष अपने भाव रखे, माताजी के सहयोग से इन्दौर पू. गुरूदेव श्री के सानिध्य में अध्ययनार्थ पहुँच गए । अब वहाँ आप वैरागी उमेशचन्द्रजी बन गए और साक्षात गुरू चरणों में रहकर वैराग्य भावों को पुष्ट करने लगे । वहाँ आपश्री ने संस्कृत में प्रथमा, कलकत्ता की काव्य मध्यमा तथा प्रयाग की साहित्य रत्न की परिक्षाएँ उत्तीर्ण की । नवकारसी, पाक्षिक उपवास भी प्रारंभ किए और 5-6 वर्षों की कड़ी परिक्षा के बाद परिजनों को दीक्षा हेतु आज्ञा प्रदान करनी पड़ी । चैत्र सुदी तेरस महावीर जयंति संवत् 2011, 15/4/1954 का
SR No.009363
Book TitleUmeshmuni Acharya Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashast Runwal, Jinal Chhajed
PublisherPrashast Runwal, Jinal Chhajed
Publication Year2014
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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