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4 धर्मनिष्ठ परिवार जिससे पाए ससंस्कार !
थांदला में श्री दौलतराम जी दौलाबा के नाम से पहचाने जाते थे । दौलाबा की पेढ़ी धार्मिक पेढ़ी कहलाती थी । दौलाबा के एक पुत्र एवं दो पुत्रियाँ थी । पुत्र श्री रिखबचन्दजी सा शांत - स्वभावी धार्मिक प्रवृत्ति के थे । वे कुशल व्यापारी तो थे ही व्यवहार कुशल भी थे । धार्मिक सामाजिक कार्यों में भी अग्रणी थे । पिता पत्र दोनो मिलकर नितिपर्वक व्यवहार करते थे । गरीबो का विशेष ध्यान रखते थे । ऐसे धर्मनिष्ठ परिवार में लीमड़ी गुजरात के झामर परिवार की सुपुत्री नानीबाई का विवाह हआ श्री रिखबचन्दजी के साथ | सुसंस्कारों से परिपूर्ण सुश्राविका श्रीमती नानीबाई ने नव रत्नो के समान नव संतानों को जन्म दिया और उन्ही में जन - जन की आस्था के केन्द्र आत्मार्थी आचार्य श्री उमेशमनिजी म.सा. का स्थान मध्य में रहा ।
5 माता पिता हुए निहाल - घर में जन्में उत्सवलाल !
हुआँ यूँ कि रात्री में प्रभु स्मरण कर माता नानीबाई निंद्राधीन हुई । सर्वत्र नीरव स्तब्धता रात्री का अंतीम प्रहर - अर्दनिद्रित अवस्था में माता ने स्वप्न देखा | स्वप्न में एक सिंह ने माता के मुखमंडल में प्रवेश किया । अलौकिक अनुभूति से माँ शय्या से उठ बैठी | शुभ संकेत से मन प्रसन्न हो उठा और शेष रात्री धर्म आराधना में व्यतीत की । जो जीव संस्कार बल का सामर्थ्य लेकर जन्म धारण करता हैं, तो उसका सम्मान दशो - दिशाएं करती हैं | सभी को इंतजार था उस शुभ घड़ी का | और वह दिवस भी आया - फागण वदी 30 सोमवार संवत् 1988, 7 मार्च 1932 अमावस की गहन रात्री में जन्म नहीं अवतरण हुआ देवलोक से एक दिव्य आत्मा का - सदा सदा के लिए मिथ्यात्व का अंधकार मिटाने के लिए - शाश्वत सम्यक्त्व का प्रकाश पाने के लिए | थांदला नगरी में प्रसंग था प्रवर्तिनी पूज्य श्री टीबूजी म.सा. के सानिध्य में श्री संपतकंवरजी म.सा. के संयम ग्रहण करने का । महोत्सव था दीक्षा का | अतः बालक का नाम भी उत्सवलाल रखा गया जो बोलचाल की भाषा में ओच्छब हो गया ।
6 नाजों से पाला - जमाने से निराला !
माता-पिता एवं परिजनों दवारा संस्कारों को प्राप्त करते करते बालक ओच्छब का प्रवेश धर्मदास विद्यालय में 7 वर्ष की उम्र में हुआ | वहाँ आपश्री का नाम ओच्छब से श्री उमेशचन्द्र हो गया | जो उम्र खेलने - कदने रेत के घरौंदे और मिट्टी के टीले बनाने की होती हैं, उसी उम्र में आप